सोमवार, 19 नवंबर 2012

अमीर- गरीब , बड़े -छोटे, ऊँच - नीच का भेद मिटाता है छठ पर्व !

    
 छठ राजस्थानियों का पर्व  नहीं है , मगर वर्षों बिहार में रहने के कारण माँ और भाभी भी इस पर्व को पूरी श्रद्धा और विधि विधान से करती हैं , जयपुर के गलता  तीर्थ सहित अन्य कुछ और स्थानों पर इस पर्व के दिन धूमधाम होती है . तीन दिन तक कठोर नियम कायदे के बीच यह व्रत बहुत मुश्किल होता है , हम  सिर्फ जल में खड़े होकर कुछ देर सूप पकड़ना ,  दूध और जल से अर्ध्य देने जितना ही कर पाते है . पिछले कुछ वर्षों में बढती भीड़ के कारण यह भी सोचा गया कि क्यों न यह पर्व घर पर ही मन लिया जाए , मगर  माँ को मनाना इतना आसान नहीं होता , कोई साथ जाए ना जाए , वे तीर्थ स्थान पर ही पूजा करती है . डूबते सूरज को अर्ध्य वाले दिन दोपहर में ही गंतव्य पर पहुँच कर ठहरने का इंतजाम , दरी , रजाई , कम्बल आदि , पूरे  परिवार के शाम के खाने का प्रबंध ,भारी  भरकम पूजन सामग्री के साथ जाना परेद्श भ्रमण जैसा ही हो जाता है . रात भर माईक पर चलने वाली  भजन -कीर्तन की सांस्कृतिक संध्या के अतिरिक्त  पटाखों की आवाज़ , छठ  व्रतियों के परिवार की महिलाओं  द्वारा झुण्ड गाये जाने वाले भजन , चाय नाश्ते के साथ अन्य  साजो सामान की छोटी दुकाने , मेले या हाट का आभास देती हैं .


 छठ पर्व के नियम के अनुसार पूजन/अर्ध्य के   के लिए जुटाई गयी सभी सामग्रियों में शुचिता का पूरा ध्यान रखा जाता है . गेंहू धोकर सुखाने से लेकर खरने के लिए खीर , पूड़ी बनाने , ठेकुआ बनाते समय बहुत सावधानी रखी जाती है . छठ पर्व का मुख्य प्रसाद ठेकुआ व्रतियों द्वारा देर रात बनाया जाता है , कहा जाता है इस समय बिल्ली या किसी भी पशु पक्षी की आवाज़ भी सुनायी नहीं देनी चाहिए . मगर अर्ध्य के समय घाट  पर उपस्थित भारी भीड़ में संतुलन बिगड़ता प्रतीत होता है . गलता  तीर्थ छठ व्रतियों के हिसाब से बहुत छोटा पड़ता है , व्यवस्था बनाये रखने में प्रशासन और विभिन्न स्वयं सेवक संगठनों  को भी बहुत समस्या होती है  . इस भीडभाड से बचने के लिए बहुत से लोग घरों में तसले अथवा टब के  पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य देने का इतंजाम भी करने लगे हैं .

पंडितों के व्यवधान के बिना भक्त और आदित्य   के सीधे संपर्क का यह  अनूठा पर्व इस मायने में अनोखा है कि इस के नियम पालन के लिए सिर्फ श्रद्धा ही काफी है .  प्रदेश  में बिहारियों की बड़ी संख्या श्रमिक वर्ग की है ,  जिनके लिए रोज की रोटी का इंतजाम ही मुश्किल होता है। अपने परिवार से दूर पर्व के लिए ज्यादा तैयारी नहीं कर पाने के कारण  कई बार इन परिवार के पुरुषों को सिर्फ नारियल या केले का डंठल लेकर ठण्ड में कांपते जल के बीच खड़े सूर्य के उगने या अस्त होने का इन्तजार करते भी देखा जा सकता है  .सूर्योदय के अर्ध्य के बाद अपनी झोली फैलाकर कम से कम दो से सात व्रतियों से प्रसाद माँगना , सुहागन स्त्रियों द्वारा अन्य स्त्रियों की मांग में सिन्दूर भरना भी इस पर्व की एक विशेषता है .   ऊँच - नीच, बड़े- छोटे , अमीर -गरीब का भेद इस समय मिट जाता है .इस पर्व पर भगवान् आदित्य के दर्शन और प्रसाद वितरण का लाभ लेते हिन्दूओं के साथ मुस्लिम और ईसाईयों  को भी आसानी से देखा जा सकता है .

माँ इस बार छठ पर बिहार में हैं . कल शाम  किसी भी शहर के छठ पर्व के विहंगम दृश्यों और तस्वीरों  के लिए समाचार चैनल पर  ट्यून किया तो सामने ह्रदय विदारक दृश्य नजर आये . राज्य की राजधानी जहाँ छठ पर्व का मुख्य  आयोजन होता है , वहां ऐसी बदइन्तजामी देखकर बहुत ही निराशा और दुःख हुआ . भूखे प्यासे व्रतियों और उनके परिजनों के साथ हुए हादसे ने दिल दहला दिया . बांस के कच्चे अस्थायी पुल के कारण  होने वाली इस घटना  के लिए यकीनन  प्रशासन के इंतजामों की खामियां गिनाई जा सकती है , मगर यह भी कहना होगा कि इस प्रकार की अन्य दर्दनाक  घटनाओं में आम नागरिकों का   दोष भी कम नहीं है . हममे  से कितने लोग प्रशासन द्वारा किये गए इंतजामों में उनका ईमानदारी  से सहयोग कर पाते हैं .सबसे पहले , सबसे आगे होने की दौड़ ऐसी बहुत सी घटनाओं का कारण बनती है . लोग कैसे भूल जाते हैं कि भीड़भाड़  वाले स्थानों पर आम जन का संतुलित और सहयोगी होना ही  सुरक्षित होता है  अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी !

जयपुर के गलता तीर्थ पर भी किये गए अनगिनत इंतजामों के बावजूद हालत बहुत खस्ता होती है . भीड़ में कई शराबी भी घुस आते हैं जो व्रतियों के परिवारजन या मित्र  ही होते हैं . इस व्रत के पालन में शुचिता का अत्यंत ध्यान रखे जाने के बाद यह व्यवहार अजीब ही लगता है .इनके द्वारा  कई बार वमन करते हुए चीखने चिल्लाने के अतिरिक्त  मार पीट के दृश्य भी उपस्थित होते हैं , जहाँ पुलिस को बीच बचाव करना पड़ता है . एक शराबी के वमन न का शिकार हमारी नयी कम्बल भी हो चुकी जिसे वही  छोड़ कर आना पड़ा .
सुरक्षा इंतजामों में पुलिस , प्रशासन और स्वयंसेवकों के साथ ही आम जनता की जागरूकता, अनुशासन , सजगता और सहयोग भी  आवश्यक है,  तभी हमारी गंगा जमुनी संस्कृति के आडम्बर रहित पर्व भी प्रसन्नता के साथ मनाये जा सकेंगे .