सोमवार, 3 सितंबर 2012

द्रव्यवती नदी का अमानीशाह नाला हो जाना ...

भर सावन मेघ ना बरसे और जो बरसे तो ऐसे बरसे ...कहाँ तो नागरिकों की नींद सूखे और अकाल के अंदेशे से उड़ी हुई थी और कहाँ झमाझम बरखा ने बाढ़ सी स्थिति बना दी . 
तभी तो कहते है कि प्रकृति और भाग्य की माया कोई ना जाने . 
कब राजा को रंक बना दे तो सूखे को ताल तलैया .

बरखा का यह दौर इस बार ऐसा आया है कि " देखत बने न देखते जिन्ह बिन देखे अकुलाही " जैसा हाल हो गया है .


सुबह पतिदेव घर से निकले ऑफिस के लिए तो  उमस के बीच आसमान के एक ओर बादलों के जमघट को देखते हुए सलाह दे दी कि आज उन्हें बाईक  की बजाय कार से जानी चाहिए . वह भारतीय पति ही क्या जो पत्नी की सलाह एक बार में ही मान ले  सो महाशय अनसुनी करते हुए फ़र्राट निकल गये और हम भी अपने घर के कामकाज और कम्प्यूटर को बारी- बारी सँभालते रहे . सामने नजर आये एक ब्लॉगर महोदय पूछ बैठे शहर का हालचाल . सब कुशल होने की खबर देकर कंप्यूटर के सामने से हटे ही थे कि अचानक ही शोर घनघोर उठा . देखा तो मेघ महोदय अति प्रसन्नता से दमकती दामिनी के बीच लरजते-  गरजते- बरसते लास्य मुद्रा में नजर आ गये . लगातार  झमाझम बारिश के कारण घर के सामने जैसे छोटा दरिया- सा बहने लगा . सड़क पर बने मेनहोल से ओवरफ्लो फव्वारे की शक्ल में नजर आ रहा था तो पीछे की गली में छोटा तालाब . पतिदेव को फोन लगाया तो महाशय अजमेर रोड पर ठाठे मारते समंदर की लहरों से घबराये सुरक्षित स्थान पर अटके हुए थे  . भारी वर्षा के भार को अदना सा  रेनकोट नहीं संभाल पाया था.  स्वयं तरबतर अपने दुपहिया और दूसरों के  चौपहिया के पानी में  डूबे होने के मंजर का आँखों देखा हाल सुनाने लगे . सम्भावना यह थी कि बारिश रुकने पर घर लौट कर गीले कपड़े बदलते कुछ भजन सत्संग हो जाता कि घर से निकलते तुमने क्यों टोका या तुमने मेरी सलाह  क्यों नहीं सुनी ,अब आया ना मजा ...
मगर सुहाने मौसम ने चाय के प्याले के साथ गीले बैग से ज़रूरी कागजात सुखाते इन सारी संभावनाओं को खारिज कर दिया :). 

पुनः  चौपहिया से निकले , मगर घूम फिर कर लौट आना पड़ा . कई स्थान पर घुटनों तक भरे पानी के आगे सारे रास्ते बंद थे . तीन मकानों के एक समूह के आगे पानी ऐसा भरा हुआ था कि उन मकानों में रहने वालों की स्थिति बाढ़ से घिरे होने जैसी ही हो गयी .  उचित व्यवस्था के लिए पुलिस बुलानी पड़ी .  गनीमत रही कि छः वर्ष पहले नए मकान की तलाश में बिल्डर द्वारा हमें भी ये मकान दिखाए गये थे परंतु सड़क की उँचाई की तुलना में  नीचे होने के कारण  हमने इन्हें अनदेखा किया . लगभग एक घंटे में सारी स्थिति सामान्य हो पाई .

बरखा का मौसम भी क्या जो बरसे नहीं परंतु हम राजस्थान वासियों को इतनी अधिक तो क्या ,अधिक वर्षा की ही आदत नहीं है . पिछले वर्ष भी अच्छी बरसात हुई मगर इस बार सिर्फ पंद्रह दिनों की बरसात ने कई वर्षों के आंकड़ों को छोटा कर दिया . छत और दीवारों पर जमी  काई और  मकानों में भीतर की दीवारों पर सीलन के काले निशान अजूबा है हमारे बच्चों के लिए क्योंकि उनके जन्म से अब तक बारिश का ऐसा मंजर उन्होंने नहीं देखा .  इससे पूर्व वर्ष 1981 में वर्षा का भारी दौर रहा था इस शहर में जहाँ बाढ़ ने भारी नुकसान किया था . राजस्थान  यूनिवर्सिटी   तक के ढहने जैसी नौबत आई .बाढ़ के कारण उबड़ -खाबड़ हुई जमीन पर आज खूबसूरत कर्पूरचंद कुलिश स्मृति वन गुलज़ार  है .

दरअसल राजस्थान में भारी बारिश इतनी बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि वर्षों तक सूखी रहने वाली बालू रेत वाली यहाँ की धरती में वर्षा जल को ज़ज्ब करने की अतुलनीय क्षमता है . समस्या जल के संग्रह और  निकास की सही व्यवस्था नहीं होना ही है  .    
 जयपुर सुनियोजित तरीके से बसाया गया  खूबसूरत शहर के रूप में जाना जाता रहा है  मगर यहाँ सीवरेज और जलनिकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण थोड़ी सी बारिश में ही जलप्लावन की स्थिति बन जाती है .   खूबसूरत शहर जयपुर के पास कभी अपनी एक नदी भी थी , अब यह सत्य यहाँ के निवासियों को चौंकाता है . हैरान कर देने वाली कड़वी हकीकत है कि द्रव्यवती नदी के नाम से विख्यात रहा यह  जलप्रवाह अब अमानीशाह का नाला कहलाने लगा है . नाला सुनकर हम तो अब तक यही मानते रहे कि जलनिकासी के लिए बनायीं गयी सीवरेज लाईन जैसा ही कुछ होगा . हैरिटेज से करोड़ों कमाने वाली हमारी सरकारें स्वयं इस अमूल्य थाती के प्रति  इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है ! सरकारों की अदूरदर्शिता , नागरिकों में  पर्याप्त चेतना का अभाव और अतिक्रमण ने शहर की अन्य व्यवस्थाओं के साथ ही जल भराव और निकास को भी भारी नुकसान पहुँचाया है . हैरानी होती है कि जिस सड़क पर जाते हुए हम सभी नागरिकों को जलभराव के क्षेत्र में आये दिन अतिक्रमण कर बनाई जाने वाली मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स नजर आती रहती है  उसी सड़क पर जाते हुए शहर प्रबंध के विभिन्न विभागों के अफसरों , मंत्रियों अथवा अन्य नेताओं को यह नजर नहीं आता . भारी बारिश के समय कुछ दिन सुगबुगाहट होती है और फिर वही ढ़ाक के तीन पात. 
प्रकृति की मेहरबानी रही कि  अब तक  वर्षा का यह दौर बहुत लम्बा नहीं खिंचा वरना लास्य तांडव में बदलते देर नहीं लगती . 
ये लो ...लिखते हुए फिर से दौर शुरू हो गया है वर्षा का ...अब तो बस ईश्वर और बरखा रानी से ही गुहार की जा सकती है कि बरखा बरसो चाहे जितना  , मगर जरा थम- थम के .. ..