शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

क्या किया जाए ....

अभी कुछ दिन पहले एक ब्लॉगर जिनके ब्लॉग की मैं नियमित पाठिका हूँ , ने मेल कर एक समस्या के समाधान में मदद मांगी . दरअसल उनकी एक महिला ब्लॉगर पाठिका मानसिक रूप से काफी परेशान लग रही थे , उनके ब्लॉग की नैतिक शिक्षा की अच्छी पोस्ट को पढ़ कर उन्हें एक अच्छा मददगार इंसान मानते हुए मदद की गुहार कर रही थी .
ये है उन महिला की विनती ...
"apne mere liye apan kimati samya diyaour ab bhi meri help karna chahte hain..aapki har salah meri samsya ka samadhaan hai..mai bahut sari samsyaon ki vajah se aisa lagata ai mera atmvishvas kam ho gaya hai.. han mujhe likhana achchha lagata hai lekin pata nahi kyon lagata hai mera atmvishvaas kam hai..mai khud ka elk blog jaroor banana chahoongi... lekinmujhe kyon lagata ha kimuhe kisi ke sath ki jaroorat hai..mai akele kuchh nhi kar sakti...

hamre smaaj me lihaj ki vajah se hi ham bahut saree samsyaon se ghire hain..isiliye mai ek group chahti hu jisme ham apni samsyaon ko khul kar poochh sake our uska nisankoch uttar paa sake..meri samajh se mahila varg ko isase bahut fayada hoga...apke paas amay ka abhav hai..our mere paas samy hi samay...kya mai isme apki kuchh madada kar sakti hu....iatni saree baten aapse bhi kahne ki himmat aaoke blog ko hipadh kar aai...usme bahur kuchh aapne apne batre me bhi likha hai....jisase mujhe utsaah mila...

dhnyvaad mere mess ka uttar dene ke liye..aapke pahle hi mess se mujhe meri ek samasya ka hal mila our mai beahd khush hui...jo mai kisi se poochh nahi sakti thi raste najar nahi a rahe the apne ummed ki ek kiran di mujhe...mera atmvishvaas keval do jagah kam padta hai....ek to mujhe lagata hai meri education...our doosri meri beemari...in dono per hi vijay pane ki koshish kar rahi hu...25% tak vijay pai bhi...koshish karrongi ki is samasya se chhutkara mile....our yahi karan hai mer hatasha ka..han mai apana blog jaroor banan chahoongi...lekin uske pahle mai apko apni likhi samgri bhejoongi..shayad isase mera atm vishvas badh jaye..kyonki ek raah batane wala mujhe abhi chahiye...

MAI BAHUT PARSHAAN RAHTI HU .. HO SAKE TO AAP KISI MAHILA MITR SE MERI BAAT KARA DIJIYE.. ya fir agar aapke paas koi upaay ho to mai apni prob aapko bata sakoo...agar meri thidi se help bhi hoti hai iske liye धन्यवाद"

जिनको रोमन पढने में परेशानी है , उनके लिए इसे लिख दिया है हिंदी में भी :)

"आपने मेरे लिए अपना कीमती समय दिया और अब भी मेरी हेल्प करना चाह्ते हैं , आपकी हर सलाह मेरी समस्या का समधन है . मैं बहुत सरी समस्याओं की वजह से ऐसा लगता है कि मेरा आत्मविश्वास कम हो गया है . हाँ मुझे लिखना अच्छा लगता है लेकिन पता नहीं क्यों लगता है कि मेरा आत्मविश्वास कम है . लेकिन मुझे क्यों लगता है कि मुझे किसी के साथ की जरुरत है , मैं अकेले कुछ नहीं कर सकती ..
हमारे समज में लिहाज़ की वजह से ही हम बहुत सरी समस्याओं से घिरे हैं . इसलिए मैं एक ग्रुप चाहती हूँ जिसमे हम अपनी समस्याओं पर खुल कर पूछ सके और उसका निःसंकोच उत्तर पा सकें . मेरी समझ में महिला वर्ग को इससे बहुत फायदा होगा . आपके पास समय का अभाव है और मेरे पास समय ही समय है . क्या मैं इसमें आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ . इतनी सारी बातें आपसे भी कहने कि हिम्मत आपके ब्लॉग को पढ़कर हुई . उसमे बहुत कुछ आपने अपने बारे में भी लिखा है जिससे मुझे उत्साह मिला .
धन्यवाद मेरे सन्देश का उत्तर देने के लिए , जिससे मेरी एक समस्या का समाधान मिला , मैं बेहद खुश हूँ . जो मैं किसी से पूछ नहीं सकती थी , रास्ते नजर नहीं आ रहे थे , अपने उम्मीद की एक किरण मुझे दी , मेरा आत्मविश्वास केवल दो जगह कम पड़ता है , एक तो मुझे लगता है मेरी शिक्षा और दूसरी मेरी बीमारी , इन दोनों पर ही विजय पाने की कोशिश कर रही हूँ , तक विजय पाई भी है , कोशिश करुँगी कि इस समस्या से छुटकारा मिले , और यही कारण है मेरी हताशा का .हाँ , मैं अपना ब्लॉग जरुर बनाना चाहूंगी लेकिन उसके पहले मैं आपको अपनी लिखी सामग्री भेजूंगी . शायद इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ जाये क्योंकि एक राह बताने वाला मुझे अभी चाहिए ...
मैं बहुत परेशान रहती हूँ , हो सके तो आप किसी महिला मित्र से मेरी बात करा दीजिये , या फिर अगर आपके पास कोई उपाय हो तो मैं अपनी समस्या आपको बता सकूं . अगर मेरी थोड़ी सी हेल्प होती है इसके लिए धन्यवाद !"

चूँकि वे खुद एक सुलझे हुए ब्लॉगर हैं , इस समस्या को अपने तरीके से मुझसे बेहतर ढंग से सुलझा सकते हैं , उन्होंने मुझसे क्यों कहा यही सोचती रही ...फिर मैंने कयास लगाया कि शायद यह एक आम गृहिणी की समस्या है , जो कुछ नया करने या सीखने की ललक रखती हैं , इसलिए ही मुझसे पूछा गया ... खैर अपनी समझ में जो मुझे आया मैंने उन्हें तुरन्त जवाब दे दिया कि उन महिला को अपनी प्राथमिकतायें तय करते हुए अपने पति और बच्चों से बात करनी चाहिए , और यदि उनसे नहीं कर सके तो किसी विश्वस्त मित्र या रिश्तेदार से ...

कह तो दिया मैंने , मगर मैं उक्त महिला की परेशानी समझ सकती हूँ क्योंकि जो महिला हमेशा घर से जुडी रही है , उसके अलावा उसने कुछ सोचा या जाना नहीं है , उसके लिए नई शुरुआत इतनी आसान नहीं होती...शुरू में परिवार से इतना सहयोग भी नहीं मिल पाता, उसके लिए कई बार अपमान या उपेक्षा को सहते हुए दृढ़ता से जमे रहना ज़रूरी है...नए प्रयास को समझने में समय लगता है , तब तक धीरज और दृढ़ता आवश्यक है , और सिर्फ घर में ही क्यों , घर से बाहर कुछ करना हो तब भी यही दृढ़ता अपनानी आवश्यक होती ही है ...बस फर्क ये हैं कि कुछ वे लोंग घर के भीतर कुछ सुनना पसंद नहीं करते, बाहर की दुनिया में अपना अस्तित्व बनाये रखने लिए जाने क्या-क्या सहन कर जाते हैं , माने ना माने , ये कडवी हकीकत है ....
मैंने पति और बच्चों से उक्त महिला के बारे में बात की , वे लोंग कोई ठोस सुझाव नहीं दे पाए . फिर ब्लॉग जगत में नारी विकास के लिए जागरूक एक सशक्त महिला ब्लॉगर से बात की मगर उनके जवाब ने मुझे बहुत निराश किया . उनका जवाब था कि हर विवाहित महिला एक कम्फर्ट जोन चाहती है इसलिए वास्तव में यह उस महिला की समस्या नहीं ,आदत है ...मैं इसमें कुछ नहीं करना चाहती !
जो महिलाएं अपने कम्फर्ट जोन में रहते हुए कार्य करना चाहती हैं , क्या उन्हें सहायता नहीं मिलनी चाहिए ?? क्या उनकी सहायता करना समय की बर्बादी है ??..
क्या मदद सिर्फ उन महिलाओं की ही होनी चाहिए जो घर छोड़ कर बाहर निकल आयें , या नारी सम्मान , नारी विकास , सशक्तिकरण पर बड़ी बातें करना और बात है , मगर जब किसी को वास्तव में मदद की आवश्यकता है तो यह कहकर कन्नी काट लेना कि यह उनकी समस्या नहीं , आदत है , कहना ज्यादा आसान है .
तब मैंने उन महिला महिला ब्लॉगर से बात की , जो नारी की समस्याओं पर कभी बहुत मुखर नहीं रही हैं , मगर मैंने देखा है कि कई नवोदित महिला ब्लॉगर्स की वे स्वयं आगे होकर सहायता करती हैं , उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि यदि वे अपनी रचनाएँ भेजें तो मैं सोच सकती हूँ कि इसपर क्या किया जा सकता है ...
उक्त महिला की व्यक्तिगत तौर पर मैं भी बहुत सहायता नहीं कर सकती , यह पोस्ट एक छोटा सा प्रयास भर है ....
उस महिला को क्या करना चाहिए या उनकी सहायता और किस प्रकार की जा सकती है ??
आप सुझायेगे ??

रविवार, 28 अगस्त 2011

अन्ना के साथ चलना , नहीं चलने से बेहतर है ....



अन्ना की आंधी ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद पहली बार अनगिनत रिकोर्ड बनाते हुए युवाओं के जोशोखरोश को एक निश्चित दिशा दी है . जैसे पूरा देश एक नींद से जाग उठा है , मुर्दा जिस्मों में हरकतें होने लगी हैं . आजादी के बाद देश में पहली बार सत्ता पक्ष के अलावा पूरा देश एक मुद्दे पर एकजुट नजर आ रहा है . युवा , बाल , वृद्ध , सरकारी संस्थाओं से जुड़े लोंग या व्यापारी , अन्ना की मुहीम में सभी एक साथ कंधे से कन्धा मिला कर खड़े हैं .

स्वतन्त्रता की लडाई एक- दो वर्षों नहीं सदियों के लम्बे संघर्ष की दास्तान है. लडाई जीत कर स्वतन्त्रता का जश्न मनाते लोगों ने तब सोचा नहीं होगा कि यह आंतरिक गुलामी की ओर बढ़ता एक कदम है . माटी के ऊपर सफ़ेद झक वस्त्रों में मंच पर सलामी ले रहे नेताओं और आह्लादित जनसमूह ने धीरे-धीरे उन लोगों को भूलना शुरू कर दिया जिनके शरीर लोकतंत्र की नींव में दबे पड़े थे और जिनकी आत्माएं वही उसी मिट्टी के नीचे दबी पड़ी कराह रही थी . 65 वर्षों में हम अपनी पीढ़ियों को एक ऐसा नेता या अगुवाई करने वाला शख्स नहीं दे सके , जो हमारे युवाओं को देश निर्माण की राह पर चलने को प्रेरित कर सके , फलतः यह युवा शक्ति विभिन्न रक्तरंजित आंदोलनों का हिस्सा बन जाने में जाया होती रही है l सरकारों द्वारा बनाई जाने वाली नीतियाँ और उपरी स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के जाल ने आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर ही दिया कि क्या यही वास्तविक आज़ादी थी , जिसके लिए हमारी पुरानी पीढ़ी ने अपने लाल यूँ ही गँवा दिए . लोकतंत्र में जनता ही चुनती है सरकार , मगर जिसे भी चुनो , सत्ता की मलाई का स्वाद चखते ही उनकी भाषा बदल जाती है या वे बदलने पर मजबूर होते हैं . ईमानदारी से काम करने या सेवा करने का संकल्प लिए युवा जब राजनीति , लोक सेवा अथवा पुलिस सेवा का दामन थामते हैं तब उनमे अतुल्य साहस और जोश होता है मगर कुछ कदम चलते ही उन्हें लडखडाना पड़ जाता है और अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए वे इस व्यवस्था के कुचक्र का हिस्सा बन जाते हैं .

व्यवस्था के महाजाल में फैले भ्रष्टाचार से सत्य और न्याय का गला घुटता रहा है और आखिर अंतिम साँसें लेते दिखाई पड़ने लगा है . हमारी सरकारी नीतियाँ अमीर को और अमीर तथा गरीब को और गरीब बनाने में ही कामयाब रही हैं . विकिलीक्स के आंकड़े बताते हैं कि किस तरह देश की पूरी पूंजी कुछ लोगों के हाथ में सीमित होती जा रही है जिसके दुष्परिणाम आम मध्यम वर्ग /निम्न वर्ग को भुगतना पड़ रहा है . सुरसा की तरह बढती महंगाई ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है . वर्षों तक दबा पड़ा यह गुस्सा आज अन्ना के साथ फूट निकल पड़ने को तैयार है . वर्तमान सरकार इस ज्वालामुखी में दबे लावे को समझ नहीं पाई बल्कि हास्यास्पद तर्क देती रही है कि प्रस्तावित जनलोकपाल बिल सिर्फ एक सिविल सोसाईटी की मांग है . उमड़े जन सैलाब और अन्ना के प्रति श्रद्धा और दीवानगी देखकर भी कोई ना समझना चाहे तो उसे क्या कहा जाए .

वास्तव में इस तरह का कोई बिल भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी की मांग है . यह मध्यमवर्गीय जन की पीड़ा है क्योंकि सबसे ज्यादा भुगतना उसे ही पड़ रहा है. भीतर दबे उनके गुस्से की चिंगारी को अन्ना नाम की आंधी ने दावानल बनाने में मदद की . कहीं न कही बाबा रामदेव के साथ दुर्व्यवहार , अन्ना की गिरफ़्तारी और सत्ता पक्ष के अनर्गल बयानों ने भी आमजन की निर्लिप्तता को दूर किया और उन्हें सड़क पर आ खड़े होने को विवश किया . अब जनता इतनी भोली भी नहीं रही कि वह खुली आँखों से भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को ही भ्रष्टाचारी साबित करने की कोशिशों को समझ नहीं सके और अब तो वह कह भी चुकी है की बस , अब और नहीं !

लोग कहते हैं जनता चुनती है सरकार ,मगर ये नहीं देखते की जिसे भी चुना जाता है , वह इरादतन या मजबूरन इस व्यवस्था का अंग बन जाने को मजबूर हो जाता है इसलिए इस लोकपाल बिल के साथ ही अपने भावी कार्यक्रमों में भ्रष्ट चरित्रों के लिए नापसंदगी का प्रावधान रखने अथवा चुने जाने के बाद भी वापस बुला लेने जैसे सुझावों ने आम जनता को सिविल सोसाईटी के उद्देश्यों से खुद को जोड़ने और उनमे आस्था रखने में मदद की है .

मैग्सेसे पुर्सस्कार से सम्मानित अन्ना की टीम के डॉ महत्वपूर्ण साथी अरविन्द केजरीवाल आयकर विभाग से तो किरण बेदी पुलिस के उच्च अधिकारी रहे हैं और कही न कही प्रताड़ित भी रहे हैं, जबकि शांति भूषन और प्रशांत भूषन नामी गिरामी वकील हैं इसलिए यह टीम व्यवस्था की खामियों और दुष्प्रभाव से अच्छी तरह वाकिफ है .


जन लोकपाल बिल पर छेड़ा गया आन्दोलन हालाँकि उस तरह नहीं पास हुआ , जैसी इसकी कल्पना की गयी थी , मगर फिर भी भ्रष्टाचार मुक्त देश की सकारत्मक दिशा की ओर बढ़ते एक कदम के रूप में यह समय यादगार बन गया है । वास्तव में सही यही है कि सिर्फ कोई भी कानून इस देश को सुन्दर भविष्य नहीं दे सकता , जब तक देश के नागरिक इसे सुन्दर बनाने की ठोस पहल ना करें । कानून सिर्फ एक माध्यम है , जबकि कार्य नागरिकों द्वारा किया जाना है ,वह है -संकल्प लेना और निभाना कि हम रिश्वत नहीं लेंगे , नहीं देंगे । हममे से अधिकांश यही मानते हैं कि रिश्वत नहीं लेना कहना जितना आसान नहीं , नहीं देना उतना आसान नहीं है । कानून कब बनेगा , किस तरह बनेगा , अभी इसके भविष्य पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है , क्योंकि जिस स्टैंडिंग कमेटी में इस पर विचार किया जाना है , उसके सदस्य खुले तौर पर टीम अन्ना की सलाह पर अपनी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं । लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से आम आदमी का जुड़ जाना इस टीम या कैम्पेन के लिए के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है । कम से कम अपने जीवन में आज तक मैंने देशभक्ति के गानों पर झूमते लहराते युवाओं के ये दल स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के अवसर पर भी नहीं देखे ।
अन्ना ने साबित कर दिया कि यदि स्वच्छ छवि वाले लोंग अपने सुख वैभव का त्याग कर अगुवाई करे तो दिग्भ्रमित युवाओं की विध्वंसकारी गतिविधियों को सही दिशा दी जा सकती है . जो बात सरकार या उनके समर्थक समझाना चाहते हैं कि यह बिल एक दम से भ्रष्टाचार को दूर तो नहीं कर सकेगा , आम जनता भी इस सच्चाई को स्वीकार करती है , मगर हाथ बांधे खड़े मूक दर्शक बने रहने की दौड़ में शामिल होने की तुलना में सकारत्मक दिशा में कुछ कदम चलना कही ज्यादा बेहतर है!
इसलिए लोग अन्ना के साथ चल रहे हैं , दौड़ रहे हैं !

कल जयपुर में भी इस जश्न को मनाने लोंग इकठ्ठा हुए । वाकई यह पहला अवसर था जब ईद , होली या दीवाली के बिना भी पूरा शहर एक साथ जश्न मना रहा था ...