शनिवार, 16 अप्रैल 2011

आवारा सडको पर कभी -कभी इत्तिफाक से ...

हमारा शहर जयपुर ना सिर्फ देश बल्कि विश्व में ऐतिहासिक , संस्कृति एवं धार्मिक पर्यटन के लिए जाना जाता है, मगर कहते हैं ना कि "घर का जोगी जोगना बाहर का सिद्ध" ... शहर के कई पर्यटन/धार्मिक स्थल अभी भी अनदेखे रहे हैं , हालाँकि कई बार उनके सामने से होकर निकलना हो जाता है , मगर "फिर कभी" कहते हुए वे इतने वर्षों में भी अनदेखे ही रह गए हैं ...ऐसा ही एक प्रसिद्द मंदिर है " जयपुर का गढ़ गणेश मंदिर "...गूगल पर पर्यटन स्थलों की खोज में इसे ढूँढने की कोशिश की ,मगर इस मंदिर पर कोई विशेष सामग्री मौजूद नहीं है...जबकि मोती डूंगरी गणेश मंदिर की तरह ही यह गणेश मंदिर भी जयपुरवासियों की आस्था का केंद्र है ...

ऊँची पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में भी प्रत्येक बुधवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है ...पिछले दिनों जब बेटियों को ज्ञात हुआ कि उनका भाई (कज़िन लिखना बहुत अजीब लग रहा है ) प्रत्येक बुधवार को जिस मंदिर में दर्शन करने जाता है , वह ऊँची पहाड़ी पर है और वे कभी वहां गयी नहीं है तो ठिनकना शुरू हो गया उनका " हमें भी जाना है "...बुधवार का इंतज़ार भी नहीं करना चाहती थी ...चूँकि उस मंदिर में बुधवार के अलावा लोगों की ज्यादा आवाजाही नहीं होती , और रोज अख़बारों की हेड लाईन्स शहरों के असुरक्षित होने की गवाही देती हुए अभिभावकों को कितना डराती हैं ... इसलिए अनुमति देते हुए हम थोडा हिचकिचा रहे थे ..मगर जैसे- तैसे चारों बच्चों ने मिलकर हमसे सहमति ले ही ली ...हजार तर्क होते हैं , आप ही तो कहते हो , अपने आप आना- जाना सीखो , अभी तो भाई भी साथ है , और कोई हम घूमने दोस्तों के साथ नहीं जा रहे हैं , मंदिर ही तो जाना है ... इन नयी पीढ़ी के बच्चों से सीखे कोई तर्क से अपनी बात मनवाना ...

सुबह जल्दी उठकर कम्प्यूटर से मगजमारी मेरे लिए कोई नयी बात नहीं है , सुबह 5 बजे ही बेटी का मोबाइल बजा ...भाई अपने घर से रवाना हो चुके थे ...15 मिनट में तो दोनों हाज़िर ...उत्साहित बेटियां फुर्ती से तैयार हुई , मेरी चुटकियों को नजर अंदाज करते हुए ...खाली पेट इतनी ऊँचाई चढ़ना ठीक नहीं है , समझाते हुए बड़ी मुश्किल से केला खाने को राजी किया ...6 बजे उनका काफिला घर से रवाना हो गया ...चली तो गयी बड़ी ख़ुशी- ख़ुशी , मगर जब उस चढ़ाई पर पहुंची तो प्यास के मारे बुरा हाल ... चूँकि उन्हें खड़ी चढ़ाई का अंदाजा नहीं था और रास्ते में पानी का इतंजाम भी नहीं ... मगर वहां पहुँचने के बाद उनके आनद की सीमा नहीं थी ...सुबह सवेरे पक्षियों कोयल , मोर और चिड़ियों आदि की बोलियाँ सुनते हुए पहाड़ी से पूरे शहर का विहंगम नजारा , और मंदिर के दर्शन ...अब मैं तो साथ थी नहीं मगर तस्वीरों और उनके बताये विवरण से ही लिख रही हूँ ...कभी मेरा जाना हुआ तो बाकायदा इस मंदिर के इतिहास और तस्वीरों के साथ विवरण भी होगा ...दरअसल आज की पोस्ट लिखने का कारण बच्चों का घूमना नहीं , बल्कि लौटते समय हुआ एक रोचक वाकया है ...

दोनों बेटियां अपनी स्कूटी पर और भतीजे अपनी बाईक पर खाली सड़कों पर ट्रैफिक नहीं होने का लाभ लेते हुए आड़ी- तिरछी गाड़ियाँ चलाते हुई लौट रहे थे ...छोटा भतीजा पीछे रह गयी अपनी बहनों को चिढाता मोबाइल से उनकी तस्वीरें खिंच रहा था ... बेटी भी स्पीड तेज करती हुई उनसे आगे निकल गयी ...उनके पीछे आ रही एक कार में एक सज्जन यह सब देख रहे थे ...भतीजों की बाईक को रोकते हुए उनसे तस्वीरें खींचने पर डांट लगाने लगे ...जब बच्चों ने उन्हें बताये कि वे अपनी बहनों के साथ है, और उन्हें स्कूटी मोड़ क़र उनके पास आते देखा , तब वे थोड़े शांत हुए ...बाद में बेटियां देर तक चिढाती रही ,"यदि हम ज्यादा दूर आ गए होते तो तुम्हारी वो पिटाई होती "...यह तो खैर मजाक की बात है ...

अब कुछ गंभीर हो जाए ... हम सब उन सज्जन के इस कार्य से बहुत प्रभावित हुए ...यदि इस तरह के जागरूक लोंग खाली सड़कों अथवा भीड़- भाड़ वाले स्थानों पर अपनी सजगता दिखाएँ तो यह दुनिया , समाज लड़कियों /महिलाओं के लिए कितना सुरक्षित हो जाए ...ऐसे समय में जब चेन लूटने से अथवा बदतमीजी का प्रतिरोध करने वाली लड़कियां/महिलाएं ट्रेन के डब्बों से उठाकर पटरियों पर फेंक दी जाती हैं , बोरी में पार्सल कर भिजवा दी जाती है ,समाज के ऐसे जागरूक नागरिकों का होना हौसला देता है , एक विश्वास जगाता है ...सभ्य नागरिक बदतमीजियों/प्रताड़ना को अनदेखा ना करते हुए इस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करे तो लड़कियों /महिलाओं के लिए एक सुरक्षित समाज की स्थापना से कौन रोक सकता है ...
मुझे गर्व है इस शहर के इस जिम्मेदार नागरिक पर ....थोड़ी थोड़ी जागरूकता हम सब भी दिखाएँ , ना सिर्फ लड़कियों या महिलाओं के सम्बन्ध में , बल्कि किसी के साथ भी ,जहाँ भी कुछ गलत /बुरा घटता दिखे ...क्योंकि प्रताड़ना और दुर्घटनाओ के शिकार तो पुरुष भी होते ही हैं !

क्या संयोग है कि इसी दिन आनंद द्विवेदी जी की यह रचना भी पढ़ी ...
"आओ कुछ और करें !"



एक मानवीय कमजोरी बहुत दिनों से चिढ़ा रही है ...हम लोंग अपना दुःख तो बहुत जल्दी दूसरों के साथ बांटते हैं , मगर खुशियाँ अकेले ही सेलिब्रेट करते हैं ...एक पोस्ट लिखी थी , बेटे की बीमारी के बारे में "बेटा बीमार है "... सभी ब्लॉगर्स की दुआ भी काम आई और आज वह एकदम स्वस्थ चित्त अपने पैरों पर खड़ा है ... बहुत दिनों से इस ख़ुशी को बांटना चाह रही थी ..आखिर आज लिख ही दिया ...