बुधवार, 5 जनवरी 2011

हमारे संस्कार बन गए हैं उनकी मौज मस्ती ....!

कड़ाके की ठंड पड़ रही है इन दिनों ...शादियों का मौसम भी कुछ समय लिए थमा हुआ है ....हिन्दू समाज में मल मास में शादियाँ या अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं ...मौसम के मिजाज़ को देखते हुए यह ठीक भी है ....

मेरी बात इस समय से कुछ पहले की है यानि जब शादियों का मौसम अपनी पीक पर था ....इस सीजन में कुछ शादियों में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ जो सामान्य से लेकर थीम पर आधारित भी थी ...ये संयोग ही रहा कि कुछ दिनों के अंतराल पर एक राजपूत परिवार के विवाह समारोह में शामिल हुए , तो दूसरी ओर एक राजपूताना थीम पर आधारित ....जहाँ एक विवाह में लोंग मदिरा और सामिष भोजन के आगे ढेर हुए पड़े थे , वही दूसरी सौम्य सभ्य, जहाँ मधुर गीतों की स्वरलहरियों के साथ वर- वधु ,घराती और बाराती सभी आनंदित हो रहे थे ....यही फर्क होता है थीम और आम विवाह समारोह में ....मगर औपचारिक होते जा रहे समारोहों में कुछ नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा अन्य लोगों की भागीदारी सिर्फ भोजन करने और लिफाफा पकड़ने तक ही सीमित रह गयी है ....कई विवाह समारोहों में तो आगंतुकों ने दूल्हा- दुल्हन को देखा भी नहीं होता है ...बस खाना खाया , लिफाफा पकडाया और चल दिए ...कई बार हम भी ऐसा ही कर देते हैं ...

एक विवाह कजिन के ससुराल में था ...कजिन दौड़ी चली आई ....मेरे ब्लॉग की नियमित पाठक भी है ...कहने लगी कि ध्यान रखना पड़ता है ....लिखने वालों का क्या भरोसा ...कुछ भी लिख दे और हम साथ हँस पड़े ...सत्य ही लिखने वालों से डरना पड़ता है ...बस फर्क यही रह गया है कि भय सिर्फ आम लोगों के साथ जुड़ गया है ....जिन्हें डरना चाहिए वे ही नहीं डरते हैं ...आप लाख कलम घसीट लें ....

विवाह समारोहों के इस मौसम में एक विवाह के टूटने की खबर भी छाई रही ...अरुण नायर और लिज़ हर्ली के विवाह-विच्छेद की खबर बहुत चर्चा में रही ... वे विवाह बंधन में पहले ही बंध चुके थे मगर हिन्दू तरीके से विवाह का लुत्फ़ उठाने के लिए ही उन्होंने इस धरती को उत्सव का एक और अवसर दिया ....हम उत्सव प्रेमी भारतीय जो सप्ताह के सात दिन व्रत कर उन्हें भी उत्सव की तरह ही मना लेते हैं , विदेशियों के लिए खासी ईर्ष्या का सबब बन जाते हैं ....मार्च २००७ में धूम धाम से हुए इस भव्य विवाह समारोह को अभी लोंग भूला नहीं पाए होंगे कि उनका विवाह टूटने की खबर भी आ गयी ....विदेशियों के लिए यह कुछ अचंभित करने जैसा मुद्दा नहीं है ....उनके यहाँ विवाह जन्मों का बंधन नहीं , एक औपचारिक रस्म भर है ....

खैर बात यहाँ भव्य विवाह समारोहों की हो रही है ...चूँकि अधिकांश भारतीयों के लिए विवाह मात्र एक रस्म नहीं है , एक संस्कार है जो ना सिर्फ स्त्री पुरुष को आजीवन बंधन में बांधता , बल्कि दो परिवारों को भी आपस में जोड़ता है ...और अपने या अपने परिवारजन के जीवन के लिए अनमोल पल होता है इसलिए इस महत्वपूर्ण पल को यादगार बनाने के लिए भरसक प्रयत्न होता है ...विवाह की भव्यता और ताम झाम इसी विश्वास से प्रेरित हैं ...

हमारे विवाह पद्धति का आकर्षण इसलिए ही विदेशियों को खींच लाता है ...वे हमारी विवाह पद्दति के उद्देश्य से सर्वथा अनजान होते है , बस इसका ग्लैमर ही प्रभावित करता है ..विवाह भी उनके पर्यटन का एक अंग बन गया है ...दोष इन विदेशी सैलानियों का नहीं है ...हम अधिकांश भारतीय भी विवाह में होने वाली विभिन्न रस्मों सिर्फ को मौज मस्ती की तरह ही लेने लगे हैं ...ना तो विवाह करवाने वाले पंडित इन रस्मों की महत्ता बताने में रूचि रखते हैं और ना ही अन्य लोग जानने में ...और इसका परिणाम ही है तलाकशुदाओं की बढती संख्या ... चूँकिहिन्दू विवाह पद्धति में विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का बंधन नहीं अपितु दो परिवारों का सम्बन्ध है इसलिए विवाह के टूटने पर दोनों पक्षों के माता -पिता और अन्य सम्बन्धी भी प्रभावित होते हैं ...बच्चे तो खैर सर्वाधिक पीड़ित पक्ष में आते हैं ...
हिन्दू विवाह पद्धति में विवाह शर्तों पर आधारित नहीं होता है .... यह हमारा धार्मिक संस्कार और संकल्प है दो इंसानों के एक साथ मिलकर चलने के लिए ...सप्तपदी में लिए जाने वाले सात वचन जो कन्या/वधु अपने पति /वर से लेती है वे इस प्रकार है ....

१. बिना किसी कारण से तुम रात बाहर नहीं बीताओगे। बाहर भोजन भी नहीं करोगे।’

२. तुम्हारे सुखदुःख, भाईबंधु अब मेरे होंगे। मेरा पालनकर्ता बनकर तुम मेरी सब जरूरतें पूरी करना।

३. ‘मैं तुम्हारी शक्ति लेकर अपनी शक्ति ब़ढाऊंगी।’

४. ‘मैं तुम्हारी खातिर जिऊंगी। तुम मेरी चिंता करना।’

५. मैं रूठूं, झगडूं, तब भी तुम शांत रहना। बुरा मत मानना।’

६. मेरे मातापिता ने पालपोस कर कन्यादान किया है, उन्होंने कुछ दिया न दिया, तुम कभी ताना मत मारना।’

७. ‘हवन, यज्ञ और सभी धार्मिक कार्यों में मैं तुम्हारी भागीदार रहूंगी, परंतु तुम्हारे पाप कार्य में मैं भागीदार नहीं रहूंगी। मैं अपना धर्म भी नहीं बाटूंगी । तुम पराई स्त्री का संसर्ग कभी नहीं करोगे।’

वर द्वारा उपरोक्त सात वचनों को स्वीकार करने पर ही कन्या उसके वाम भाग में बैठती है तत्पश्चात दोनों ध्रुवतारा के दर्शन करते हैं जिसका कारण उनके संबंधों की ध्रुव तारे सी अटलता की कामना ही है ...

इन वचनों /कसमों /प्रतिज्ञाओं को समझे बिना ही सिर्फ अग्नि के सात फेरे लेना ही विवाह नहीं है ....ये सात वचन हमारी विवाह पद्धति की मुख्य रस्मे हैं जिन्हें हम कम से कम महत्व देते हुए अपना पूरा ध्यान अच्छे खाने , नाच गाने पर केन्द्रित करते हैं ....

विदेशियों से तो हम शिकायत कर भी ले , मगर अपने लोगों का क्या करें ... !!!!!