शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

एक रोचक वाकया ... गूगल बाबा की मेहरबानी का

गूगल बाबा की मेहरबानी से किसी भी मेल प्राप्त कर्ता की चैट लिस्ट में मेल भेजने वाले का नाम अपने आप ही जुड़ जाता है ...और इसके कारण आप कैसी अजीबोगरीब स्थिति का सामना कर सकते हैं देखिये ...


मेरी भाभी जो अभी कुछ महीने पहले ही इन्टरनेट से जुडी हैं , ने ऑरकुट पर अपना अकाउंट बनाया ....एक दिन मेल बॉक्स में उनका नाम ऑनलाइन दिख गया ...उनकी दिनचर्या से परिचित होने के कारण इतनी सुबह उनका नाम देखकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई...
अपनी आदत के मुताबिक छेड़ दिया ... " का हाल बा "
उधर से जवाब आया ..."नमस्कार "

उस दिन मैं स्वयं भी जल्दी में थी ...बात बस यहीं समाप्त हो गई..

उसके कुछ दिनों बाद फिर दिख गयी ...उसी समय ...
"क्या कर रही हो"...मैंने पूछ ही लिया
एक लिंक भेजा है किसी ने , वही देख रही थी ....
अपना फ़र्ज़ समझते हुए टोक ही दिया ...
"किसी भी अनजान व्यक्ति की भेजी मेल या लिंक एकदम से मत खोल लेना .."
इतना समय हो गया है , अब तो समझ आ ही गया है कि क्या देखना चाहिए , क्या नहीं" ...
उधर से जवाब आया ...
मेरा चौंकना स्वाभाविक था ... उन्हें ज्यादा समय हुआ नहीं है ...थोडा बुरा भी लगा कि शायद मेरी सलाह अच्छी नहीं लगी उन्हें ...फिर ये सोच कर कि ननद और भाभी का ऐसा वाला रिश्ता तो स्वाभाविक , सनातन और शाश्वत  है , चुप लगा गयी ...

अभी कुछ दिनों पहले मिलना हुआ तो मैंने उस दिन की बातचीत का जिक्र किया ...
"मगर दीदी , मेरी तो आपसे बात ही नहीं हुई , और इतनी सुबह तो मैं ऑनलाइन रहती ही नहीं हूँ ..."उसने कहा तो चौंकने की बारी मेरी थी ...गनीमत है कि आदत के मुताबिक कोई हंसी -मजाक नहीं किया था ...

चैट लिस्ट चेक की तो सारा माजरा समझ आया ...भाभी के नाम का ही आई डी किसी ब्लॉगर का था ...अब क्या किया जाए ...उन ब्लॉगर महोदय /महोदया को कहने की बजाय सीधे पोस्ट ही लिख दी है ...ग़लतफ़हमी का कारण समझ ही जायेंगे ...

एक साथी ब्लॉगर का टोकना याद आ गया ..." कभी किसी से बात की शुरुआत मत करो " ...नहीं करेंगे जी :):) ...और बात करनी होगी तो अच्छी तरह मेल एड्रेस पढ़ कर ...

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

जिंदगी का सफ़र .....


जब कभी
कभी रेल में सफर करने का मौका मिला ...एक ख़याल हमेशा रूबरू रहा ... जिंदगी का सफर भी तो बिल्कुल रेल के सफर के मानिंद ही है ...मंजिल की और बढ़ते हुए अनजान राही हमसफ़र हो जाते हैं ...तो कभी साथ चलने वाले खो जाते हैं ...कोई कुछ लम्हों का साथी , कोई कुछ दूर तक का तो कोई देर तक का सहयात्री ....

देखा है रेल में कई बार , अच्छी- खासी आरामदायक सीट उपलब्ध होने पर भी खिड़की की तरफ़ नही बैठ पाने का मलाल पालते लोग ...नही जानते की हमेशा ही पेड , झील , नदियाँ , पहाड़ आदि ही नजर नहीं आते , कई बार दूर- दूर तक फैला रेगिस्तान भी दिख जाता है , जिसका कोई ओर- छोर नहीं , धूल- धक्कड़, सूखे तिनके उड़ कर आँखों की किरकिरी बन जाते हैं , आंसू तक ला देते हैं .....

वहीं खिड़की के पास बैठे लोगों को देखा है तरसते हुए ..कि थोडी पसरने की जगह मिल जाए तो जरा पैर पसार लें...जरा सुस्ता लें ....नींद पूरी ले लें ...कोई अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नही ...क्या ऐसा ही नही है जिंदगी का सफर ...कुछ और उम्दा कुछ और बढ़िया की तलाश में भागते लोग...

वहीं सफर में कुछ ऐसे मुसाफिर भी ...खचाखच भरी रेल में पैर रखने तक को ...और उनके पास सीट नहीं...बेचारे धक्का- मुक्की करते हुए इसी ताक में रहते हैं ...कि कब कोई सीट खाली हो ...और वो जरा सा टिक भर लें ...बहुत मुश्किल से जब वो जगह खाली मिलती है...तभी मंजिल चुकी होती है ...हसरत भरी निगाहों से खाली स्थान को देखते लोग उतर जाते हैं अपनी मंजिल पर ...क्या ऐसा नहीं है जिंदगी का सफर....सारी उम्र जद्दोजहद में बिता कर खीजते -खिझाते ...जब सामने होती है आपके ख़्वाबों की ताबीर ...तब तक जिंदगी अपना सफ़र पूरा कर चुकी होती है ....

वहीं सफर में कुछ ऐसे होते है मुसाफिर भी ....बिना कोई स्थान प्राप्त किए भी ...कभी खड़े ...कभी किसी सीट के कोने पर कुछ देर अटकते ...पर चेहरे पर कोई शिकन नहीं ...दूसरे मुसाफिरों की मदद करते हुए ...खाली हाथ...अपनी मस्ती में झूमते....गाते- गुनगुनाते ...-हंसाते सफर करते हैं...क्या ऐसा ही नही है जिंदगी का सफर भी ...अपनी जिंदगी से भरपूर संतुष्ट ...क्या लेकर आए ...क्या लेकर जायेंगे...ऐसी भावना से परिपूर्ण ...मुस्कुराकर जिंदगी के आखिरी मुकाम पर उतरने को तैयार ....


आज हम भी सोचें !! जिंदगी के सफर का कौन सा तरीका अख्तियार करेंगे ??