बुधवार, 2 जून 2010

बेटा बीमार है .....

मेरी दो बेटियां हैं ...बेटा नहीं मगर माँ , मम्मी , मॉम आदि संबोधन दिए बगैर भी सचमुच माँ जैसा ही सम्मान देने वाले बेटे कई हैं ...उनमे से एक बहुत ही प्यारा भोला भाला सा बेटा आजकल बीमार है ...

अभी लगभग एक वर्ष पूर्व जब उसे एक डेढ़ महीने के अंतराल पर देखा तो मैं भौंचक रह गयी ...दुबला पतला सा जय बिलकुल गोल मटोल हो चुका था मात्र एक महीने में ...उसके मम्मी पापा बहुत खुश हो रहे थे उसकी सेहत को देखकर ...मगर जाने क्यों मुझे कुछ खटका सा हुआ ...अच्छी सेहत से चेहरे और आँखों में जो चमक होनी चाहिए , वह कहीं नजर नहीं आ रही थी ...बिलकुल फूला हुआ गुब्बारे जैसा ...अख़बारों में छपने वाले प्रोटीन पाउडर के विज्ञापन याद आ गए ..
" क्या बात है जय ...आजकल कुछ दवा ले रहा है क्या मोटे होने की "...डरते -डरते मैंने टोक ही दिया । भोली भाली ठेठ ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी उसकी माताजी को बुरा लगने का जोखिम लेते हुए भी ...

" नही चाचीजी , ऐसी कोई बात नही है ...बस आजकल जिम जा रहा हूँ कसरत करने ..." जिम के नाम से तो मेरा माथा और ठनका ...

" भाभीजी , जय से प्यार से पूछिये वो कोई दवा तो नही ले रहा , कुछ छिपा तो नही रहा है ...आजकल ऐसी दवा लेते हैं बच्चे और इनके बहुत बुरे साइड इफेक्ट होते हैं "..मैंने उसकी माताजी से कहा...

" अरे नही , आजकल आराम करने लगा है , भीगे चने खाता है इसलिए ही..."

मगर मेरी शंका का समाधान नही हुआ था ...मैं घर आने के बाद भी पति और बच्चों से कई बार अपनी चिंता जाहिर करती रही ...

जयपुर में संक्रांति त्यौहार बड़े शोरगुल और उत्साह के साथ पतंग उड़ाते हुए मनाया जाता है ... संक्रांति के दिन अपने चाचा और बहनों के साथ पतंग उड़ाने बच्चे हमारे घर ही आ जाते हैं ...पतंगों के पीछे भागते और सीढियां चढ़ते उतरते जय को देख मैं थोड़ी उलझन में थी ।

" चाचीजी , आजकल तो घुटने दुखते हैं मेरे..बुढ़ापा गाया लगता है "...वो हँसते हुए कह रहा था ...

" अभी १९-20 वर्ष की उम्र में तुम्हारे घुटनों में दर्द , चल अभी डॉक्टर को दिखा लाती हूँ " मैंने पूरी गंभीरता से कहा ...मगर जय मजाक में टालता रहा ...

ज्यादा जोर देकर मैं भी नही कह सकती थी ...

अभी ३ महीने पहले अचानक उसके पैरों में मोच आ गयी ...कई दिनों तक पहलवान से मालिश करवाने के बाद भी आराम ना मिलते देख डॉक्टर को दिखाना पड़ा ...डॉक्टर की सलाह पर कई प्रकार के टेस्ट करवाने के बाद पता चला कि दर्द सिर्फ मोच का नही था ...उन्होंने बताया कि ताकत के लिए ली जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट के कारण कूल्हे की हड्डियों में रक्तसंचार रुक गया था और इसका उपचार सिर्फ ऑपरेशन ही है ...बहुत जोर देकर पूछने पर आखिर जय ने इस प्रकार की दवा लेने की बात कबूल की ..

डेढ़ महीने के अंतराल पर दोनों कूल्हों के ऑपरेशन के बाद अभी जय स्वास्थ्य लाभ कर रहा है ...अभी कम से कम छः महीने का बेड रेस्ट करना होगा ...उसके बाद ही पता चल सकेगा कि वह अपने पैरों पर कब तक खड़ा हो सकेगा ... उसका ध्यान बंटाने के लिए उससे हंसी मजाक करते हुए हम लोग भीतर से डरे हुए हैं ...क्यूंकि ऑपरेशन से शत प्रतिशत लाभ होने की गारंटी नही है ...भरपूर जीवन शक्ति और जूझने का जज्बा रखते हुए भी कई बार उसकी आँखे भर आती हैं ...हॉस्पिटल में अपने आस पास के मरीजों को जिम ना जाने और कोई दवा नही लेने की सलाह देता रहा ...

युवा होते बच्चे को इतने दिनों तक सिर्फ लेटे देखना माता पिता के लिए भी कितना दुखद है , उस बच्चे के लिए तो होगा ही ...

एक दूसरे की देखा देखी युवा पीढ़ी सबकुछ (सेहत भी )जल्दी पा जाने की जल्दी में है और चाहे अनचाहे इसके परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं ...अभी कुछ महीने पहले जिद करके खरीदी गयी अपनी बाईक को कमरे में अपनी आँखों के सामने रखे देखकर आहें भरता रहता है , बेटियां SMS चैटिंग से बाते करते हुए उसका मन लगाने की कोशिश में लगी रहती हैं ...और जय ...इनको ही समझाता है कि ठीक होते ही तुम्हे बाईक चलाना सिखा दूंगा मगर 90 की स्पीड से कम में नहीं चलाने दूंगा ...

उसके सामने हँसते मुस्कुराते उसके माता पिता आंसुओं को छलकने नहीं देते ...अब प्रार्थना और इन्तजार के सिवा किया भी क्या जा सकता है ...