शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

ये बेचारे (??) पति

ये बेचारे पति ....

इनको समझने के लिए खुशदीप जी के दस commandents की कोई आवश्यकता नहीं ...दरअसल इन्हें समझने की ही जरुरत कहाँ पड़ती है ...फिर भी शिखा वार्ष्णेय ने अपनी पोस्ट में परिभाषित करने की कोशिश की थी ...मगर हरी अनंत... हरी कथा अनंता की तरह पतियों की अपार महिमा को महज दस पॉइंट्स में प्रस्तुत करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ...इसलिए जो रह गए मैं यहाँ लिखने की कोशिश कर रही हूँ ....

बात पति की हो और खाने से शुरुआत ना हो ....

पत्नी के हाथ का बना भारतीय, चायनीज , कांटिनेंटल ...हर तरह का खाना अपनी अंगुलिया चाट कर खाने के बाद पेट पर हाथ फेरते पतियों के मुंह से यही सुनने को मिलेगा ...खाना तो हमारी मां बनाती थी ...(वो चाहे जिंदगी भर पुए पकौड़ी बना कर ही खिलाती रही हों )......

2 किलोमीटर जोगिंग कर के आये पत्नी और बच्चों के साथ बैडमिन्टन खेलते हुए अगर पिताजी का फ़ोन आ जाये तो फिर देखिये ....दुनिया जहां की दुःख तकलीफ एक साथ उनकी आवाज में समां जायेगी ....बरसों पहले पाँव की टूटी हड्डी का दर्द उभर कर सामने आ जाता है ....

और इन पतियों के टेनिस प्रेम का तो कहना ही क्या ...विशेषकर जब विलियम्स बहने खेल रही हों ...शर्त लगा ले ...अगर ज्यादातर पतियों को टेबल टेनिस और लोन टेनिस का अंतर भी मालूम हो तो... टकटकी लगाये इन टेनिस प्रेमियों से कोई पूछे तो कि इनके सात पुश्त में भी किसी ने टेनिस खेली थी ....और तो और जिन दिनों विम्बल्डन (महिला ) मैच आ रहे हो ...अपने सर्वाधिक प्रिय खेल क्रिकेट का त्याग भी बड़ी ख़ुशी ख़ुशी कर देते हैं ...

टीवी पर उद्घोषिकाओं के ओजस्वी बोल्ड वचनों और वादविवाद से प्रभावित इन पतियों को अक्सर पत्नियों से ये कहते सुना जा सकता है..." मुंह बंद नहीं रख सकती हो ...जरुरी है हर बात का जवाब देना "

टीवी चैनल पर कार्यक्रम को खोजते हुए रिमोट पर इनकी अंगुलिया किस कदर दौड़ती हैं कि मजाल है कोई भी कार्यक्रम ढंग से और पूरा देखा जा सके और जिन चैनल्स पर जा कर रूकती हैं ...ये नाक मुंह भौं सब सिकोड़ते हुए मिल जायेंगे ..." कैसे कैसे कार्यक्रम दिखाते हैं ये लोग भी " ....मगर मजाल है जो कम से कम दस मिनट से पहले रिमोट पर इनकी अंगुली आगे बढ़ सके ...

घर से बाहर घूमने , खाना खाने , मूवी देखने जाने पर दूसरे नव विवाहित जोड़ो (या बिना विवाहित भी ) को देखकर भीतर ही भीतर ठंडी आंहे भरते उन जोड़ो को कोसते नजर आ जायेंगे ...." क्या जमाना आ गया है " ...अब ऐसे में कोई उनके बीते ज़माने याद दिला दे तो ...

फिल्मे बकवास होती है ..क्या कहानी होती है ...फालतू समय की बर्बादी ....मगर माशूका या पत्नी के गम में इन पतियों को पास बैठी पत्नियों को बिसराते शाहरुख के साथ आंसू बहते अक्सर देखा जा सकता है ...कोई गम सालता है इन्हें भी ...कि जुदाई का गम कैसे महसूस करे... ये कही जाती ही नहीं ...

पत्नी की लाई अच्छी से अच्छी शर्ट भी इन्हें तभी पसंद आती है जब बाहर से उनकी तारीफ सुन कर आयें ...

उम्र बढ़ने के साथ इनकी खूबसूरती बढती जाती है...और पत्नी की कम (खुद इन पतियों की नजरों में )

और बार बार टूटा दिल तो ये अपनी जेब में लेकर चलते हैं...चेहरे की रंगत बताती है जितनी बार टूटा उतना अधिक फायदा ...अलग- अलग टुकड़े अलग- अलग सुन्दरियों को एक साथ देने के काम आ जाते हैं

कितना क्या लिखूं ...अनगिनत पुराण लिखे जा सकते हैं ....मगर कही जाकर तो रुकना होता है ...एक साथ इतने झटके झेल नहीं सकते ....बाकि फिर कभी ...और पतियों के कुछ गुण कमेन्ट के लिए भी तो बचने चाहिए ....




नोट ...यह एक निर्मल हास्य भर है ...दिल से ना लगाये .....पतियों से हमारी पूरी सहानुभूति है...:):)...और भुक्तभोगी होने कयास तो बिलकुल भी ना लगाये ...

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एक ख़ास सूचना ... http://www.shails.com/manjusha/index.html.....
स्वप्ना मञ्जूषा अदाजी का यह ब्लॉग 1995 में बना होने के कारण हिंदी का पहला ब्लॉग होने का गौरव प्राप्त करता है ....महफूज़ से मेरी बात हुई थी ...वह स्वयं इस पर लिखने वाला था इस सन्दर्भ में उसकी पोस्ट का इन्तजार है ....यदि इसमें कुछ सुधार है तो महफूज़ और अदाजी से निवेदन है कि अपना रुख स्पष्ट करें ...




मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

मत दीजिये मेडल , बधाई तो दे ही दीजिये .......

कल मिथिलेश से बातचीत में जब उसे अपनी उम्र बताई (हालाँकि मैंने कभी कोशिश नहीं कि है अपनी वास्तविक उम्र छिपाने की ...मेरे ऑरकुट और फेसबुक अकाउंट में बाकायदा जन्मतिथि अंकित है ) तब से ही मस्तिष्क लगातार चिंतन मनन कर रहा है ...वास्तव में उम्र तो काफी हो गयी है ... मानो या मत मानो ...उम्र तेजी से रेत की तरह हाथ से फिसलती जाती है ...खतरा होने पर बिल्ली की तरह आँख मूँद कर बैठने से तो खतरा टलता नहीं ...इसलिए हम भी बढती उम्र के इस सच को साहस से स्वीकार कर लेते हैं ...

वृद्धजन पर छाई लरिकाई है ...को तो जैसे तैसे अनदेखा कर भी दिया मगर जब अदाजी ने भी " बूढ़ भाई हैं हम बेचारी " कहकर स्वीकार कर ही लिया है तो इस सच्चाई को स्वीकार कर लेने में ही भलाई नजर आ रही है ...उम्र के पड़ावों को गिनते हुए अफ़सोस गहराता जा रहा है ....उफ़...इतनी उम्र हो गयी ...कोई तमगा हासिल नहीं किया ....पहुँच गयी श्रीमानजी के पास ...जो रात का खाना खाने के बाद चश्मा लगाये कल्याण का जीवनचर्या अंक पढ़ रहे थे (ज्यादातर मैं ही पढ़ती हूँ )...इसमें विभिन्न ऋषियों और ऋषिपत्नियों (महर्षि अगत्स्य और महादेवी लोपामुद्रा,महर्षि गौतम और महादेवी अहिल्य आदि )की जीवनचर्या का उल्लेख करते हुए गृहस्थों को अपने जीवन को सदाचार के साथ बीतने के दिशा निर्देश दिए गए हैं ...
मैंने बात बढ़ाते हुए कहा ... " जी ...कई दिनों से मन में रहा है कि कभी कोई मेडल नहीं मिला जिंदगी में ...और ये जिंदगी तो भागी जा रही है ...क्यों नहीं आप ही दे देते हैं सद गृहस्थन का मेडल ..."
चश्मे से घूरते हुए श्रीमान बोल उठे ...." ठीक है ...इस अंक में महादेवी लोपामुद्रा के सद्गुणों का वर्णन है ...तुलना कर के देख लेता हूँ ... "
अँधा क्या चाहे दो ऑंखें ...हम भी साथ साथ पढना शुरू कर दिए...

बृहस्पति महाराज ने महादेवी लोपामुद्रा की प्रशंसा करते हुए ऋषि अगत्स्य से कहा ...
" आपके भोजन का लेने पर ये अन्न ग्रहण करती हैं , जब आप खड़े होते हैं ये बैठी नहीं रहती , आपके सो जाने पर सोती हैं और आपके जागने से पहले जाग जाती हैं , आपके आयु बढे इसलिए आपका नाम अपने जिव्हा पर नहीं लाती , ये कभी घर के द्वार पर देर तक खड़े नहीं रहती , स्वामी के भोजन से बचे हए अन्न और फल आदि को वे स्वयं ग्रहण करती हैं , गृहकार्य में कुशल हैं , सदा उत्साहयुक्त और प्रसन्न रहती हैं , अधिक खर्च नहीं करती , आपकी आज्ञा के बिना कोई व्रत-उपवास नहीं करती , जहाँ अधिक जान समुदाय जुटा हो , ऐसे उत्सव को देखने से दूर रहती हैं , पति की आज्ञा के बिना तीर्थों में भी नहीं जाती , विवोहोत्सव देखने की इच्छा नहीं करती , जब पतिदेवता सुखपूर्वक सोये , बैठे अथवा आराम करते रहते हैं , उस समय अत्यंत आवश्यक कार्य होने पर भी ये पति को नहीं उठाती , ओखली, मूसल , झाड़ू , सिल और देहली आदि पर कभी नहीं बैठती , घर में घी , नमक , तेल आदि समाप्त हो जाने पर पतिव्रता स्त्री सहसा यह कहती कि ये वस्तुएं नहीं हैं ....

दिल ख़ुशी से बल्लियों उछला जा रहा था कि आज तो मेडल मिल कर रहेगा ...कोई पानी हाथ में देकर कसम खिला ले हमारे पतिदेव से ...खड़े खड़े ही प्राण त्याग दे यदि ये गुण हम में ना हो तो ....

कि तभी पतिदेव अचानक पढ़ते पढ़ते रुक गए और मंद मंद मुस्कुराने लगे ....गर्दन हिलाते हुए बोले ..." भूल जाओ मेडल , होपलेस केस है तुम्हारा " ....
इस तरह अचानक ब्रेक लगते देख भी हम निराश नहीं ये ..." क्या कहते हो जी , ये सब गुण तो हममे है , आप इंकार कैसे कर सकते हो "
" हाँ ...बस यहीं तक के गुण मिलते हैं ...आगे ...?" उनके प्रश्नवाचक निगाहे तीर की तरह जा गडी ...
" क्या है जरा मैं भी तो देखूं ...." मैंने आगे पढना शुरू किया " स्त्रियों के लिए श्रेष्ठ नियम बताया गया है कि वह स्वामी के चरणों की पूजा करके भोजन करे " ...हम अटकने लगे ..." साल में 4-5 बार(चौथ व्रत और दिवाली )हमारे चरण छू लेती हैं आप वो भी इस तरह जैसे चिकोटी काट रही हो ...पूजन तो खैर संभव ही नहीं है "

आगे पढना शुरू किया ..." यदि पति कोई कड़ी बात कह दे तो भी ये उसका उत्तर नहीं देती , उनके दंड देने पर ये प्रसन्न ही होती हैं , रंज अथवा बुरा नहीं मानती ... बस ..." अब और ज्यादा बर्दाश्त नहीं हुआ ...दिमाग खिसकने लगा ...
..." अभी तो महर्षि गौतम और देवी अहिल्या की जीवन चर्या पढनी बाकी है ...शायद आपको कुछ आशा वहां से मिल जाए ..." भाव भंगिमा बदलते देख आग उगलती हमारी नजरों से बचने के लिए चश्मा चढाते हुए पतिदेव बोल उठे ...
दिमाग भन्ना गया हमारा तो ..." उनके दंड देने पर प्रसन्न हो ले ...ये क्या बात हुई ...रहने दीजिये ...हमको नहीं चाहिए कोई मेडल आपसे ..." कहते हुए पुस्तक उनके हाथ में थमा दी ...

अभी भी हिम्मत हारने जैसी बात कहा थी ...टीवी पर मिसेज इंडिया प्रतियोगिता का ऐलान किया जा रहा था ... अदिति गोवित्रिकर का हवाला देते हम भी इस प्रतियोगिता पर गौर करते ही कि पहले कदम पर ही कद के मामले में सूई अटक गयी ....चलो जाने दो ...ख़ूबसूरती ना सही ...अभिनय का पुरस्कार तो मिलेगा ही ... जिसमे हर भारतीय मध्यमवर्गीय गृहिणी निपुण होती है ...वे सारी जिंदगी इसके अलावा और करती क्या हैं ...
घर में अचानक मेहमान आ जाये , चाय बनाने का मन नहीं हो तो झट " दूध फट गया ...पता नहीं आजकल कैसा दूध आ रहा है "
बढ़ते हुए बजट को काबू में करने के लिए कई जरुरी चीजों पर कटौती करते हुए इन्हें यह कहते हुए अक्सर सुना जा सकता है ..." इनको और बच्चों को तो ये सब बिलकुल पसंद ही नहीं है (मसलन महंगे होटल में खाना खाना , माल में मूवी देखने जाना आदि आदि ) ...
ननद या बहन का बेटा क्रिकेट का जौहर दिखाते हुए खिडकियों के शीशे तोड़ जाए तो अन्दर ही अन्दर जलते भुनते (कर दिया इतना नुकसान ..अपने खुद के घर में तो खरोंच भी नहीं आने दे )ऊपर से मुस्कुराते " अरे .. बच्चे तो ऐसे ही करते हैं शरारतें ..कोई बात नहीं " कितने नमूने गिनों उनके अभिनय के ....अनगिन ...

मगर कहाँ ....अभिनय के पुरस्कार की लाइन में भी हम मात ही खा गए ...देखे अपने आस पास नजर घुमा कर तो एक से एक अभिनेत्रियाँ भरी पड़ी है ...कई तो बाकायदा अभिनय कक्षा से प्रशिक्षित हो कर आई हैं ....

तभी कही पता चला कि ब्लॉग लेखन में भी मेडल मिलता है ....अब यहाँ बौद्धिक लोगों की आभासी दुनिया में पर रंग रूप कद कोई मायने नहीं रखता इसलिए अपने लिए अपार सम्भावना देख कूद पड़े मैदान में .....मगर ये क्या ...मुंड मुंडाते ही ओले पड़े ....सब एक से एक ज्ञानी ...फिर भी हम कौन इतना आसानी से मैदान छोड़ने वालों में से थे ..." कुछ बात हम ही में है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ..
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा "
बिना विदुषी हुए जो भी उल्टा पुल्टा आता था ...कहानी , कविता , संस्मरण , लेख सब लिख दिए ....मगर अभी मेडल प्राप्त करने के लिए बहुत मुकाम तय करने हैं ...पहले तो तस्वीर होनी चाहिए पर ( यहाँ भी मुंह देख कर तिलक निकाला जाएगा ...पता नहीं था )...और सबसे जरुरी रूग्ण स्त्रैणता / स्त्रियोचित मानसिक रुग्णता (?)नहीं होनी चाहिए ...मतलब रामचरितमानस के पाठ के साथ यहाँ वहां दिए गए लिंक में झाँकने की हिम्मत भी होनी चाहिए ...हाँ ...ये मध्यमवर्गीय रुग्णता तो हो सकती है ...और होगी क्यों नही ...हैं ही मध्यमवर्गीय ....क्यों नाहक भ्रम पाले ....यह रुग्णता सिर्फ और सिर्फ स्वयं की खिंची हुई लक्ष्मण रेखा को स्वीकार करती है ...दूसरों की बनाई हुए रेखाओं को नहीं ... इसलिए यहाँ भी कोई मेडल मिलने की संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आ रही ....
एक अदाजी से थोड़ी बहुत उम्मीद थी कि देर सबेर कोई मेडल दे ही देंगी मगर उनके साहित्य पुरस्कारों की आवश्यक शर्तें देखकर आखिरी उम्मीद भी समाप्त हो गयी ....

चलिए... मत दीजिये कोई मेडल ...

बधाई तो दे ही दीजिये ....खिंच खांच कर 100 पोस्ट लिख दिए हैं ....
अग्रिम आभार ....







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