सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

रामचरितमानस से चुन लिए कुछ मोती...

नोट ...यह प्रविष्टि कोई प्रवचन या उपदेश नहीं है . रामचरितमानस को अर्थ सहित समझने का प्रयास मात्र है ...

रामायण और रामचरितमानस हिन्दू संस्कृति के प्रमुख ग्रन्थ हैं ...हर घर में इनका होना अनिवार्य है ...श्रीराम के जीवनवृत पर आधारित श्रद्धा से जुडी होने के कारण अतुलनीय पूज्यनीय तो है ही मगर ....सिर्फ धर्म की दृष्टि से ही नहीं , कविता या महाकाव्य के रूप में भी यह विलक्षण है ...अलंकारों का ऐसा सुन्दर उपयोग और किसी भी महाकाव्य या ग्रन्थ में नहीं है ....इसे पढ़ते हुए व्यकित चकित , चमत्कृत रह जाता है ...इतनी असाधारण प्रतिभा दैवीय ही हो सकती है ....

वाल्मीकि को संसार का आदि कवि माना जाता रहा है क्यूंकि उनके सम्मुख कोई ऐसी रचना नहीं थी जो उनका पथ प्रदर्शन कर सके ...इसलिए रामायण महाकाव्य उनकी मौलिक कृति है और इसलिए ही इस महाकाव्य को आदिकाव्य भी कहा जाता है ...
वाल्मीकि रामायण संस्कृत का महाकाव्य है जिसमे वाल्मीकि ने राम को असाधारण गुणों के होते हुए भी उन्हें एक मानव के रूप में ही चित्रित किया है ...जबकि रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में ...

चुन लाई हूँ कुछ मोती ...आप भी आनंदित हो लें ...

तुलसीदास की राम के विवरण और वर्णन में अपनी असमर्थता को प्रकट करती विनम्रता देखते ही बनती है...परन्तु कुटिल खल कामियों को हंसी- हंसी में विनम्रता के आवरण में कब तंज़ कर जाते हैं , पता ही नहीं चलता ....

मति अति नीच ऊँची रूचि आछी चहिअमि जग सुर छाछी ।।
छमिहहिं सज्जन मोरी ढिठाई सुनिहहिं बालबचन मन भाई ।।

मेरी बुद्धि तो अत्यंत नीची है , और चाह बड़ी ऊँची है चाह तो अमृत पाने की है पर जगत में जुडती छाछ भी नहीं है सज्जन मेरी ढिठाई को क्षमा करेंगे और मेरे बाल वचनों को मन लगाकर सुनेंगे

जों बालक कह तोतरी बाता सुनहिं मुदित मन पित अरु माता
हंसीहंही पर कुटिल सुबिचारी जे पर दूषण भूषनधारी

जैसे बालक तोतला बोलता है , तो उसके माता- पिता उन्हें प्रसन्न मन से सुनते हैं किन्तु कुटिल और बुरे विचार वाले लोंग जो दूसरों के दोषों को ही भूषण रूप से धारण किये रहते हैं , हँसेंगे ही ...

निज कवित्त कही लाग नीका सरस होई अथवा अति फीका
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं ते बर पुरुष बहुत जग नाहिं

रसीली हो या फीकी अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं , ऐसे उत्तम पुरुष (व्यक्ति ) जगत में बहुत नहीं हैं ...

जग बहू नर सर सरि सम भाई जे निज बाढहिं बढ़हिं जल पाई॥
सज्जन सकृत सिन्धु सम कोई देखी पुर बिधु बाढ़ई जोई

जगत में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक है जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं अर्थात अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं . समुद्र - सा तो कि एक बिरला ही सज्जन होता है जो चन्द्रमा को पूर्ण देख कर उमड़ पड़ता है ...


महाकाव्य लिखने में तुलसी की विनम्रता देखते ही बनती है ...जहाँ आप -हम कुछेक कवितायेँ लिख कर अपने आपको कवि मान प्रफ्फुलित हो बैठते हैं और त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाते ही भृकुटी तान लेते हैं , वहीँ ऐसा अद्भुत महाकाव्य रचने के बाद भी तुलसीदास खुद को निरा अनपढ़ ही बताते हैं ...

कबित्त विवेक एक नहीं मोरे . सत्य कहूँ लिखी कागद कोरे ...

काव्य सम्बन्धी एक भी बात का ज्ञान मुझे नहीं है , यह मैं शपथ पूर्वक सत्य कहता हूँ ...
मगर श्री राम का नाम जुड़ा होने के कारण ही यह महाकाव्य सुन्दर बन पड़ा है ..

मनि मानिक मुकुता छबि जैसी . अहि गिरी गज सर सोह तैसी
नृप किरीट तरुनी तनु पाई . लहहीं सकल संग सोभा अधिकाई ...

मणि, मानिक और मोती जैसी सुन्दर छवि है मगर सांप , पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी सोभा नहीं पाते हैं ...राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर पर ही ये अधिक शोभा प्राप्त करते हैं ..

अति अपार जे सरित बर जून नृप सेतु कराहीं .
चढ़ी पिपिलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं..

जो अत्यंत श्रेष्ठ नदियाँ हैं , यदि राजा उनपर पुल बंधा देता है तो अत्यंत छोटी चीटियाँ भी उन पर चढ़कर बिना परिश्रम के पार चली जाती हैं ...

सरल कबित्त कीरति सोई आदरहिं सुजान ...

अर्थात चतुर पुरुष (व्यक्ति ) उसी कविता का आदर करते हैं , जो सरल हो , जिसमे निर्मल चरित्र का वर्णन हो ...

जलु पे सरिस बिकाई देखउं प्रीति की रीती भली
बिलग होई रसु जाई कपट खटाई परत पुनि ..

प्रीति की सुन्दर रीती देखिये कि जल भी दूध के साथ मिलाकर दूध के समान बिकता है , परन्तु कपटरूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है (दूध फट जाता है ) स्वाद (प्रेम )जाता रहता है ...

दुष्टों की वंदना और उनकी विशेषताओं का वर्णन बहुत ही सुन्दर तरीके से किया है ...
संगति का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ...इसको भी बहुत अच्छी तरह समझाया है ..-

गगन चढ़इ राज पवन प्रसंगाकीचहिं मिलइ नीच जल संगा
साधु असाधु सदन सुक सारिणसुमिरहिं राम देहि गनि गारीं

पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले ) जल के संग में कीचड़ में मिल जाती है ...साधु के घर में तोता मैना राम -राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता मैना गिन गिन कर गलियां बकते हैं ...

धूम कुसंगति कारिख होई लिखिअ पुरान मंजू मसि सोई
सोई जल अनल अनिल संघाता होई जलद जग जीवन दाता

कुसंग के कारण धुंआ कालिख कहलाता है , वही धुंआ सुन्दर स्याही होकर पुराण लिखने के काम आता है और वही धुंआ जल , अग्नि और पवन के संग मिलकर बादल होकर जगत में जीवन देने वाला बन जाता है ...

नजर और नजरिये के फर्क को भी क्या खूब समझाया है ...
सम प्रकाश तम पाख दूँहूँ नाम भेद बिधि किन्ह।
ससी सोषक पोषक समुझी जग जस अपजस दिन्ह॥

महीने के दोनों पखवाड़ों में उजियाला और अँधेरा समान रहता है , परन्तु विधाता ने इनके नाम में भेद कर दिया है . एक को चन्द्रमा को बढाने वाला और दूसरे को घटाने वाला समझकर जगत ने एक को यश और दूसरे को अपयश दिया ...



क्रमशः

43 टिप्‍पणियां:

  1. चुन-चुन कर लाये गए मोती...सुबह-सुबह अमृतपान करना अच्छा लगा.

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  2. आपके चुने मोती बहुत सुन्दर हैं ...आभार

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  3. सच कहा मानस के मोती हैं ही इतने लाजवाब कि जब भी पढो एक नया अर्थ ही देते हैं …

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  4. सचमुच मोतियाँ ही इकट्ठी कर लाई हो....बहुत ही सुन्दर सन्देश से भरे उद्धरण
    नवरात्रि के दौरान पढना और अच्छा लगा.

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  5. बहुत सुंदर लगी आप के मोतियो की यह माला, एक से बढ कर एक, मैने तो कभी नही पढी रामायण, इस लिये इन सब के बारे भी कोई ग्याण नही, धन्यवाद

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  6. मनि मानिक मुकुता छबि जैसी . अहि गिरी गज सर सोह न तैसी
    नृप किरीट तरुनी तनु पाई . लहहीं सकल संग सोभा अधिकाई ...
    मुझे याद पड़ता है कि बाबा तुलसी का आशय यह था की कविता जहाँ से निकलती है वहां उतना शोभा नहीं पाती जितना जहां वह ग्राह्य होती है ...
    मतलब स्रोत से अधिक वह लक्ष्य पर सुहाती है ...और लक्ष्य अधिकारी श्रोता हैं ....
    जरा चेक कर बताएं की मैं सही हूँ या नहीं ....आफिस में हूँ नहीं तो अब तक मानस तक हाथ पहुंच गए होते

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  7. सागर से चुन चुन कर मोती निकाले हैं आपने ... सरिता सी बह रही है .....

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  8. चलो, हमने भी राम-सरिता में स्नान कर लिया.

    बढिया संकलन किया है.

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  9. प्रशंसनीय संकलन।
    "परन्तु कुटिल खल कमियों" में कमियों को ठीक कीजिये। मेरा ध्यान इस पर जाना स्वाभाविक ही है, अन्यथा मत लीजियेगा।

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    1. Naam let Bhav Sindhu Sukhahi Sujan Vichar Karahu Man Mahi from Kaushik G Purani

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    2. आपका रामचरितमानस के मोती पढ कर बहुत अच्छा लगा है।

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  10. बहुत ज्ञान की बातें प्रस्तुत की हैं । बहुत बढ़िया ।

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  11. राम चरित मानस का तो जबाब नहीं .. आपने अच्‍छी पंक्तियों को उद्धृत किया है !!

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  12. बहुत सुंदर चयन ओर साथ में सरल भषा में अर्थ। आधुनिक समाज को इन सब तथ्यों पर ध्यान देने की जरूरत हे

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. बहुत ही सुन्दर और सच्चें मोती ढूंढ़ निकले आपने मानस रूपी सागार से .....आभार

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  15. वह मोती जो मुझे बहुत प्रिय है:
    चन्दन तरु हरि संत समीरा।

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  16. तुलसी कृत रामचरितमानस तो एक विश्वकोष है , जो भी ग्रहण करना चाहो मिल जाता है

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  17. 🌹बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि भोरें॥ सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु परितोषे॥🌹


    हे रामजी! मैं बार-बार हाथ जोड़कर यह माँगता हूँ कि मेरा मन भूलकर भी आपके चरणों को न छोड़े। जनक के श्रेष्ठ वचनों को सुनकर, जो मानो प्रेम से पुष्ट किए हुए थे, पूर्णेकाम रामजी संतुष्ट हुए।


    🌹श्रीराम जय राम जय जय राम 🌹

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  18. इस विचार को mp3 में भी लाने का प्रयास करें एवं आसान pdf फाइल में डाउनलोड करने का आसान तरीका भी सुझाएं जिससे कि धर्म की स्थापना पुणे हो सके!
    !धर्मो रक्षति रक्षिता:!

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  19. shri ramchritmanas ka koi bhi sabd jaha aa jaye wo sthaan turant hi sudh ho jata hai, aape jo choupaiya di hai bahut achi hai aur atoot satya hai par jiwan may badlao koi lana chahta nhi bahut kam hi hai jo badal sakte hai. Kuch uttar kand aur baal kand may se bhi bheje

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  20. अति सुन्दर पंक्तियों को चुनकर और सुंदर रमणीक प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही अच्छी बातें रामचरितमानस के भीतर से छांट कर हम सब को एक नवीन ऊर्जा प्रदान की । धन्यवाद

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  21. तुलसीकृत रामचरितमानस में जो अनोखा प्रेम ज्ञान त्याग कर्तव्य का मनमोहक चित्रण है जिसे मनुष्य एक बार नहीं हजार बार नहीं सारी उम्र पढ़ें पर इसकी प्यास नहीं बुझती इसका इसका जितना असर प्रभु राम के लीला का है उससे कहीं ज्यादा अपने सरल और मनमोहन भाषा में करने वाले परम पूज्य सद्गुरु बाबा तुलसीदास जी का है

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  22. बहुत ही सुन्दर और सार्थक है आज के दौर में यह प्रसंग

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  23. अत्यंत सुंदर ,राम चरित के इन उदाहरणों से मनुष्य का व्यथित मन प्रभु भक्ति में लीन हो जाता है

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    1. Bahut hi Sundar panktiyan hai usse manushya Kaji Uddhar ho sakta hai sadaiv Hamare ghar mein Ramcharitmanas padhna chahie Taki bacchon ko acche Sanskar Milte Apne andar bhi Gyan Prapti ho sake Jay Shri Ram Sitaram

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  24. मानस मोती पढ़कर मन प्रसंन्न हो गया

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  25. इन सुंदर शब्द रूपी मोतियों की माला पहनकर मन ह्रदयंगम हो गया,,,,अभिनन्दन है आपका।

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  26. Kaushik G Purani Naam Let Bhava Sindhu Sukhahi Sujan Vichar Karahu Man Mahi

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