गुरुवार, 25 मार्च 2010

विपत्ति कसौटी जे कसे सोई सांचे मीत .....



जीवन एक संग्राम ही तो है । जिसमे समय समय पर विभिन्न विपत्तियाँ आती हैं । इन विपत्तियों में ही परम मित्र की सत्यता प्रमाणित होती है ।
पंचतंत्र में कहा गया है ...." जो व्यक्ति न्यायलय, शमशान और विपत्ति के समय साथ देता है उसको सच्चा मित्र समझना चाहिए "
मित्र का चुनाव बाहरी चमक दमक , चटक मटक या वाक् पटुता देखकर नहीं कर लेना चाहिए। मित्र ना केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाला बल्कि हमारी भावनाओं को समझने वाला सच्चरित्र , परदुखकातर तथा विनम्र होना चाहिए।

मित्रता के लिए समान स्वाभाव अच्छा होता है परन्तु यह नितांत आवश्यक नहीं है। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में में भी मैत्री संभव है। नीति-निपुण अकबर तथा हास्य -व्यंग्य की साकार प्रतिमा बीरबल, दानवीर कर्ण और लोभी दुर्योधन की मित्रती भी विपरीत ध्रुवो की ही थी ...

सच्ची मित्रता बनाये रखने के लिए जागरूकता आवश्यक है। यह देखना आवश्यक है कि क्या हमारा मित्र हमारा हितैषी है ? हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ? दोषों से हमारी रक्षा करता है? निराशा में उत्साह देता है ? शुभ कार्यों में सहयोग और विपत्ति सहायता करता है या नहीं ?

दूसरी जागरूकता यह होनी चाहिए कि हम अपने मित्र के विश्वासपात्र बने । उसकी निंदा से बचे। उन पलों या घटनाओं को उससे दूर, छिपा कर रखे जो उसे अंतस तक दुःख पह्नुचाते हैं ना कि उसका विश्वासपात्र बनने के लिए उसे खूब प्रचारित करे ।
किसी ने ठीक कहा है ..." सच्चा प्रेम दुर्लभ है , सच्ची मित्रता उससे भी दुर्लभ "

श्रीरामचरितमानस के पठन का असर अभी गया नहीं है ...राम की महिमा ही ऐसी है .... मित्र धर्म पर पर कुछ बेहतरीन सूक्तियां देखें ....

जे ना मित्र दुःख होहिंबिलोकत पातक भारी
निज दुःख गिरी संक राज करी जानामित्रक दुःख राज मेरु समाना

जोग लोग मित्र के दुःख से दुखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है । अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के सामान तथा मित्र के धूल के समान दुःख को पर्वत के समान जाने ।

जिन्ह के असी मति सहज ना आई ते सठ कत हठी करत मिताई
कुपथ निवारी सुपंथ चलावा गुण प्रगटे अव्गुनन्ही दुरावा

जिन्हें स्वाभाव से ऐसी बुद्धि प्राप्त नहीं है , वे मूर्ख क्यों हाथ करे किसी से मित्रता करते हैं ? मित्र का धर्म है वह मित्र को बुरे मार्ग से रोक कर अच्छे मार्ग पर चलाये। उसके गुण को प्रकट करे और अवगुणों को छिपाए।

देत लेत मन संक धरई बल अनुमान सदा हित कराई
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा श्रुति का संत मित्र गुण एहा

मित्र अपने बल अनुसार देने लेने में संकोच ना करते हुए सदा हित करे । विपत्ति के समय सौगुना स्नेह करे। वेद कहते हैं कि सच्चे मित्र के यही गुण होते हैं ।

आगे कह मृदु वचन बनाई पाछे अनहित मन कुटिलाई
जाकर चित अहि गति सम भाई अस कुमित्र परिहरेहीं भलाई

जो सामने तो बना बना कर भले वचन कहता है और पीठ पीछे बुराई करता है , तथा मन में कुटिलता रखता है। जिसका मन सर्प की चाल के सामान टेढ़ा है,उस कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है ।

सेवक सठ , नृप कृपन , कुनारी, कपटी मित्र सुल सम चारी ....
मूर्ख सेवक, कंजूस राजा , कुलटा स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शूल के सामान है ...इनसे बचना चाहिए।

मित्र के बारे में चाणक्य ने भी कुछ लिखा है ....
परोक्षे परोक्षेकर्यहंतारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम
वर्जये तासदृषम मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम
पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले तथा सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे विष के घड़े के सामान त्याग देना चाहिए ।




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14 टिप्‍पणियां:

  1. वाणी,
    बहुत ही सुन्दर आलेख, यूँ तो जाने क्या-क्या ढूंढती रहती हूँ पढने के लिए...आज कल ब्लॉग में काम की चीज़ ही नज़र नहीं आती...मैं खुद भी अनाप-शनाप लिखती रहती हूँ...लेकिन तुम्हारे ब्लॉग में आकर काम की चीज़ मिल रही है...कल दुष्टों की बात की आज मित्रों की ...तुलसीदास ने भी कहा है 'धीरज धर्म मित्र और नारी, आपात काले परखिये चारी'
    और तुमने तो सारे गुण-अवगुण गिना दिए...बहुत ही सुन्दर....इन व्याख्याओं से निश्चय ही मित्रों की पहचान हो जायेगी...और जो अच्छे मित्र बनना चाहते हैं और अगर उनमें कोई कमी है (उदहारण 'अदा' ) वो अपने में कुछ बदलाव ले आयेंगे...
    हमेशा की तरह, सुन्दर, सार्थक, सम्पूर्ण, सुव्यवस्थित, सुघड़, सुरुचिपूर्ण, सटीक और सुसंस्कृत आलेख....
    सादर...:)

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  2. जो ना मित्र दुख होहिं दुखारी। तिनहिं बिलोकत पातक भारी।।

    सार्थक रचना है आपकी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. अत्यंत सारगर्भित आलेख. शुभकमनाएं.

    रामराम.

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  4. आपकी राम नवमी निश्चित रूप से सार्थक हुयी है ...एक ओर जहाँ आपने खुद लाभ उठाया है वहाँ दूसरों को भी लाभान्वित कर रही हैं...
    इस लेख के माध्यम से हर व्यक्ति को स्वयं को पहचानने का अवसर भी मिल रहा है...
    उत्तम लेख के लिए बधाई

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  5. बहुत ही सारगर्भित आलेख्।

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  6. बहुत ही सार्थक आलेख |दुष्टों और सच्चे मित्रो की पहचान करने का आभार |

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  7. अच्छा मित्र, मित्र नहीं खुदा होता है....
    महसूस तब होता है...जब जुदा होता है.....

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  8. बहुत ही सार्थक और सारगर्भित आलेख...आजकल तो यह ब्लॉग अपने नाम के अनुरूप ही बस ज्ञान की ही वाणी बोल रहा है.:)

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  9. आपकी पोस्ट, ब्लॉग पर चल रहे आजकल के लेखन कला से थोडा हट कर,कुछ नया ज्ञान देती रहती है,ऐसा नहीं है कि इन बातों या तथ्यों से हम अनजानहैं ,लेकिन आप द्वारा उन्हें एक साथ समेट देना बड़ी बात है. इस लिए ऐसी पोस्ट मेरी नजर में सम्माननीय श्रेणी में आ जातीं है.यही असली बात है जिस लिए हम सब ब्लोगिंग में हैं-कुछ विशेष नया-जानकारी भरा -वर्ना तो ब्लाग जगत में आज -कल क्या लिखा - पढ़ा जा रहा है आप देख ही रहीं हैं..
    आपकी लगातार पोस्ट बहुत ही उम्दा हैं, मेरी नजर में.
    ऐसे ही ज्ञान के मोतियों की वर्षा करती रहें.बहुत धन्यवाद.

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  10. ओह....मन मुग्ध कर लिया आपने....

    परम हितकारी अतिसुन्दर आलेख...

    साधुवाद....

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  11. इस लाईन को सुधारें -
    जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी तेहिं विलोकत पातक भारी
    आपमें तो एक श्रेष्ठ कथा वाचिका के गुण हैं
    विद्वान भी यहाँ पठन श्रवण लाभ कर रहे हैं -

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  12. सही है.. विद्वान भी यहाँ पठन श्रवण लाभ कर रहे हैं !

    तुलसी बाबा की उक्तियों के आगे कौन ठहरे भला ! अपरिमित ज्ञान-राशि बिखरी है रामचरितमानस में ! इष्ट-ग्रंथ है यह तो हम सबका !

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