गुरुवार, 26 नवंबर 2009

मेरी बात ...................

पिछले कुछ दिनों से नारियों की बड़ी गहमा गहमी रही ब्लॉग जगत में ...पूरी तरह से नारियों का धमाल ....नारियों का या नारी सम्बंधित विषयों का ....आँचल , पायल , चूड़ी , सब खनक लिए भरपूर ....

मुख्य मुद्दा रहा वस्त्रों के चयन को लेकर ....आज जहाँ नारियां अन्तरिक्ष में कदम रख चुकी है ...इन पर बहुत ज्यादा दिमाग खपाना बेमानी सा ही लगता है ....जींस, पैंट, स्कर्ट आदि वस्त्र अब भारतीय समाज में सहज स्वीकार्य हो गए है ...हालाँकि पूर्ण भारतीय वस्त्र साड़ी अपनी दौड़ में कही पिछड़ी नही है ...इसमे कोई शक नही की साड़ी में भारतीय नारी अपनी पूरी गरिमा से सुशोभित होती है और साड़ी पूरे विश्व में हमारी संस्कृति की एक प्रमुख पहचान रही है ...मगर जिस तरह से समाज में जागरूकता और नारियों की सहभागिता बढ़ी है ....साड़ी का स्थान अन्य विकल्पों ने ले लिया है ....इसमे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ...? आपत्ति का कारण महज मर्यादाविहीन वस्त्रों का होना ही हो सकता है ....हालांकि मुझ जैसी बहुत सी महिलाएं साड़ी में अपने आपको असहज महसूस नही करती ...मगर जिनके लिए यह सुविधाजनक नही है ...कार्यस्थल और व्यवसाय के अनुरूप अन्य वस्त्रों का चयन अनुचित तो नही कहा जा सकता है ....बात इतनी सी है की ...चूँकि वस्त्र शरीर ढकने के लिए होते है ...उनका उपयोग इसी उद्देश्य से किया जाए ....ऐसे वस्त्रों का चयन हो जिसमे ना तो स्त्रियाँ और ना ही पुरूष अपने आपको असहज महसूस करे ....चूड़ी , पायल , बिंदी आदि स्त्रियों के लिए बाधक नही रही हैं ...और अब तो इनको लेकर कोई पूर्वाग्रह नही रह गए हैं ...अपनी सुविधा के हिसाब से इनका उपयोग किया जाता है ....
वहीं यह भी एक सच्चाई है कि पूरी तरह से गरिमामय वस्त्रोंऔर आभूषणों से सुसज्जित स्त्रियाँ भी प्रताड़ना का शिकार होती रही है ...ज्यादातर प्रताड़ना का कारण उनका स्त्री होना ही होता है ....उनके वस्त्र आदि नही ...

अब बात आती है अधिकार और कर्तव्य की ....हम देखते ही है ...दिन प्रतिदिन ...देश की जो हालत बिगडती जा रही है ....ज्यादा से ज्यादा नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक है ....कर्तव्यों के प्रति नही ....यदि संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं तो कर्तव्यों के लिए भी स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं .... परिवार और समाज में पुरुषों की ही तरह नारी को अधिकार प्राप्त हैं ....लेकिन अपनी प्रत्येक बात मनवाने के लिए अधिकार का झंडा हाथ में उठाकर चलना ना तो पुरुषों के हित में है ...ना ही नारियों के ...अधिकार हैं तो कर्तव्य भी ....
प्रकृति ने माँ बनने का गौरवमय अधिकार सिर्फ़ नारी को दिया है ...इस लिहाज़ से उसे कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं तो उसके साथ कर्तव्य भी ....अधिकारों की रक्षा करते हुए अपने कर्तव्यों को ना भूले ....
अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम सिर्फ़ विरोध करने के लिए विरोध करे ...या उनके परिणामों और दुष्प्रभावों पर पूरी तरह विचार करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ...प्यार और सम्मान युक्त अधिकार प्राप्त करे .....
स्त्रियों की सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने के लिए बहुत से कानून बनाये गए हैं ....मगर आस पास नजर डाले तो इन कानूनों का दुरूपयोग ही ज्यादा किया जा रहा है ....कानून का उपयोग ज्यादातर अपनी गैरजरूरी मांगों को मनवाने में किया जा रहा है .... कुछ पुरुषों के बुरे स्वभाव का दंड पूरे पुरूष समाज को तो नही दिया जा सकता .....यदि स्त्री माँ, बहन, बेटी बहू है... तो पुरूष भी पिता, भाई, पुत्र है ....भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता उन्हें भी उतनी ही है जितनी कि हम नारियों को ....देश और समाज के निर्माण में अपना योगदान हम उनके साथ चलते हुए उनके क़दमों से कदम मिला कर भी दे सकते हैं ....
कई शोधों में साबित हो चुका है कि ...बच्चों के साथ उनकी माँ का होना उन्हें भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है ...जो उनके सुंदर और दृढ़ व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होता है ....विदेशों में जहाँ पुरूष और स्त्री समानता का बिगुल बजाया जा चुका है ...वहां भी अब यह महसूस किया जा रहा है ....
स्त्रियाँ अपने करियर को प्राथमिकता दे रही है ...उन्हें पूरा हक़ है ...लेकिन जो अपनी मर्जी से या अपने परिवारजनों की मर्जी से अपना घर संभाल रही है ...उन्हें प्रताड़ित या दोयम दर्जे का ही क्यों समझा जाए ....

और एक बात है सामंजस्य की ...कहाँ सामंजस्य नही करना होता है ...वर्षा कम हुई ...धूप ज्यादा है ....भयकर सर्दी ...क्या प्रकृति से सामंजस्य नही करेंगे ....!!
घर से बाहर बस की लाइन में , पार्किंग में , बाजार से सामान खरीदने में , चिकित्सा में , शिक्षा में ...कहाँ कहाँ सामंजस्य नही कर रहे है हम ..अनजान लोगों से ...तो फिर अगर थोड़ा सा सामंजस्य उन लोगो के साथ हो ...जिनसे हमारी जिन्दगी जुड़ी है ...जिनसे हम भावनात्मक रूप से जुड़े हैं , पूरी जिन्दगी जिनके साथ जीने का संकल्प लिया है ...क्या बुरा है ....!!


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रविवार, 22 नवंबर 2009

तुम याद आए ...बहुत याद आए



तुम्हारा
हाथ हाथ में लिए
नहर के किनारे
सरसों के खेतों की पगडंडियों पर
गुनगुनी धूप में
देर तक चलते
दूर जाती ट्रेन की आवाज से पलटते
आबादी से दूर पाकर ख़ुद को
भाग कर हांफते हुए लौटते
कितने गीतों के मुखड़े साथ गुनगुनाये
आज वे गीत जब किसी ने गाये
तुम याद आए.....
बहुत याद आए .......