रविवार, 8 नवंबर 2009

खुल रही है यादों की परतें ....




माथे
पर चढ़ गयी है त्योरियां
खून उतर आया है आंखों में
तमतमा गए है चेहरे कई
भींच गयी हैं मुट्ठियाँ
तीखी हो गयी है जबान की धार भी
सज गए है चाकू छुरियां
संभाल लिए है भाले बर्छियां
चढ़ गए कांधे पर तीर कमान
म्यान से निकल पड़ी है तलवारें
ढाल की आड़ लिए पहन लिए है बख्तरबंद
तेल पिला दी गयी हैं सभी लाठियाँ
दुनाली का रुख भी है अब इसी तरफ़

कहीं यादों की परतें खुलने लगी हैं
जख्मों की सीवन उधड़ने लगी है ......



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